रिपोर्ट ललित जोशी
नैनीताल । सरोवर नगरी नैनीताल उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण दिए जाने के मामले पर सुनवाई की। जिसमें लगभग 6 दर्जन से अधिक नौकरी कर रहे आंदोलनकारियों पर नौकरी का खतरा मंडराने वाला है।
यहाँ बता दें मामले को सुनने के बाद कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश संजय कुमार मिश्रा व न्यायमुर्ति आरसी खुल्बे की खण्डपीठ ने सरकार के प्रार्थरना पत्र को यह कहकर निरस्त कर दिया है कि आदेश को हुए 1403 दिन हो गए। सरकार अब आदेश में संशोधन प्राथर्ना पत्र पेश कर रही है । अब इसका कोई आधार नही रह गया है न ही देर से पेश करने का कोई ठोस कारण प्रस्तुत किया गया है। यह प्राथर्ना पत्र लिमिटेशन एक्ट की परिधि से बाहर जाकर पेश किया गया। जबकि आदेश होने के 30 दिन के भीतर पेश किया जाना था।
आपको बता दे कि राज्य आंदोलनकारियों को दस फीसदी क्क्षैतिज आरक्षण दिए जाने का शाश्नादेश एनडी तिवारी की सरकार द्वारा 2004 में लाया गया था।2015 में कांग्रेस सरकार ने विधान सभा में विधेयक पास कर राज्य आंदोलनकारियों को 10 फीसदी आरक्षण देने का विधेयक पास किया और इस विधेयक को राज्यपाल के हस्ताक्षरों के लिये भेजा परन्तु राजभवन से यह विधेयक वापस नहीं आया । अभी तक आयोग की परिधि से बाहर 730 लोगो को नौकरी दी गयी है। इन लोगों की नौकरी में खतरा मंडराने लग गया है।