आख़िर उत्तराखंड में क्यों जरुरी हैं हिमांचल जैसा भू-क़ानून

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शंकर सागर रावत…

राज्य आंदोलन से लेकर ये बात उत्तराखंड के आम जनमानस के मन मस्तिष्क व आत्मा में काफ़ी गहराई से बैठा दी गयी थी की उत्तराखंड राज्य का निर्माण हिमांचल की तर्ज़ पर किया जायेगा.. लेकिन 9 नवंबर 2000 को राज्य गठन के बाद ये राज्यात्मा की एक मात्र मांग को धीरे-धीरे तत्कालीन अतरिम सरकार से लेकर चुनी हुई सरकारों ने लगातार अनदेखा कर दिया..

2002 को पहली चुनी हुई सरकार के मुखिया नारायण दत्त तिवारी ने कोशिश की हिमांचल जैसा सख्त भू-क़ानून लाने की.. लेकिन केंद्रीय शक्तियों के दबाब में उनको एक समिति गठित करनी पड़ी जिसके अध्यक्ष के तौर पर तत्कालीन राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष विजय बहुगुणा को बनाया गया.. विजय बहुगुणा ने राज्य की जनभावनाओ के विपरीत जाकर केंद्रीय शक्तियों की चाटुकारिता करते हुए यहाँ की क़ृषि योग्य जमीनों में तुषारापात करते हुए 500 वर्ग मीटर मकान घर कोठी दुकान बनाने के लिए upzla 1950 की 154 (2) के तहत संसोधन कर सहमती सहित संस्तुति प्रदान की जो 2004 में अध्यादेश के रूप में उत्तराखंड की जनभावनाओं पर पहली कील ठोकी गयी…
राज्य की सभ्रान्त जनता के दिलों में यहाँ से एक टिस बननी शुरू हों गयी जिसके फलस्वरूप तिवारी जैसे महाअनुभवी राजनीतिज्ञ को भी जनता ने 2007 के आम चुनाव में सबक सीखा दिया.. इस जनभावना को बीजेपी भलीभांती जानती थी तभी उनको जनता ने 2007 में गद्दी पर बैठाया पर खंडूरी सरकार भी हिमांचल जैसा भू-क़ानून लगाने में अपने केंद्रीय आकाओं के दबाब में सफल नहीं हों सकी हा 500 की जगह 250 वर्ग मीटर कर जनता को कुछ मजबूरियों सहित संदेश देने की कोशिश जरूर की गयी यह भी एक अध्यादेश ही था क़ानून बनाने की जहमत खंडूरी सरकार भी नहीं उठा सकी..

उत्तराखंड की जनता अब समझ चुकी थी की ज़ब तक केंद्रीयकृत सरकारें यहाँ राज करेगी तब तक यहाँ हिमांचल जैसा भू-क़ानून लगाना इनके बस की बात नहीं हैं.. पर क्या करें उत्तराखंड क्रांति दल (ukd) का भी चेहरा और दागदार था उसने भी क्रमशः कांग्रेस बीजेपी में सत्तासुःख भोगा और कभी भी यहाँ हिमांचल जैसा भू-क़ानून की पैरवी नहीं की.. 2012 में फिर वहीं बहुगुणा की सरकार आई जिसने पहले कील ठोकी थी उसके बाद हरीश रावत आये लेकिन किसी ने भी यहाँ के जनभावनाओं को गहराई से समझा ही नहीं किसी ने भी हिमांचल जैसा भू-क़ानून लाने के बारे में सोचा ही नहीं.. 2004 और 2007 के अध्यादेशों के माध्यम से इस राज्य को लगातार बेवकूफ बनाया गया इन अध्यादेशों में इतने लकुनाज़ थे की राज्य की 7.70 लाख हैक़्टेयर क़ृषि भूमि में से 1.20 लाख हेक़्टेयर भूमि का लैंडयूज कब चेंज हों गया किसी को कुछ पता ही नहीं चला.. और मुख्यमंत्री आवास से लेकर सचिवालय विधानसभा सहित यहाँ के शिक्षक डॉक्टर इंजिनियर सभी अपना मुख्य काम छोड़ भू-माफियाओं के साथ साठगाठ कर जमीनों को बेचने में लग गये.. राज्य की परस्थिति ऐसी हों गयी की हर घर का नौजवान फ़ौज आईएएस पीसीएस डॉक्टर इंजिनियर की तैयारी छोड़ जमीनों के धंधे में लग गया जिसे देखो वो चाय व नाई की दुकान सहित चौक चौराहों में सैकड़ो हज़ारो बीघा ज़मीन खरीद बेच की बात करते हुए आम सुनाई देने लगा..
2017 में त्रिवेंद्र की सरकार आयी त्रिवेंद्र सरकार ने केंद्र के दिशा निर्देशों को अक्षरसः पालन करते हुए पूरे उत्तराखंड को तस्तरी में सजाकर बाहरी लोगों को 15 दिन में स्वतः ही जमीनों को अपने नाम करने की स्कीम लॉन्च कर दी.. बाहर का कोई भी हों वो अपनी एक फ़र्ज़ी कंपनी बनाकर लाये और जितनी मर्ज़ी उतनी ज़मीन अपने नाम कर लें.. इस क़ानून को लाने के लिए त्रिवेंद्र सरकार ने राज्य की जनता को काफ़ी टेक्निकल तरीक़े से बेवकूफ बनाने की कोशिश की 2018 में एक इन्वेस्टर समिट मीट का आयोजन किया गया जिसमें काफ़ी लम्बी चौड़ी गफ़ मारी गयी की राज्य में 1.20 लाख करोड़ का इन्वेस्टमेंट लाया जा रहा हैं.. इस हैंलोजन के गुब्बारे को दिखाकर त्रिवेंद्र सरकार ने upzla 1950 की 154(2) और कंपनी एक्ट 143 में संसोधन कर 12.50 एकड़ की सीलिंग भी हटा दी.. राज्य की 135 करोड़ जनता की जनभावनाओं को नेस्तानाबूद कर सदा सदा के लिए अध्यादेश को अधिनियम(क़ानून) बनाकर विधानसभा में पास करा लिया.. यहाँ से राज्य की जनता भलीभांती समझ गयी की अब हमारा जल जंगल जमीन रोटी-बेटी संस्कृति परास्थितिकी सहित सभी हक़-हकूकों की तिलांजलि हों गयी हैं…


इस बात और मंसा कों भू-अध्यादेश अधिनियम अभियान उत्तराखंड राज्य आंदोलन से लेकर 2012 तक समझ बना रहा था.. 2015-16 से अभियान राज्य में हिमांचल की तर्ज़ पर भू-क़ानून लागू करो कों लेकर लगातार जनजागरण व चर्चा सेमिनार सहित साईकिल यात्रा व मैराथन कराते आ रहा था.. पर 2018 से अभियान ने इन्वेंस्टर समिट मीट का विरोध करते हुए कहाँ था की यह राज्यात्मा की आवाज़ के साथ छल हैं भद्दा मज़ाक हैं.. तब से अभियान ने राज्य की 24 लाख परिवारों कों यह समझाने की कोशिश की ज़ब तक यहाँ हिमांचल की तर्ज़ पर भू-क़ानून नहीं लग जाता हैं तब तक हमारी संस्कृति सहित कुछ भी सुरक्षित नहीं रहेगा.. जिस प्रकार से जन्मदिन के अवसर पर बच्चों के लिए हैप्पी बर्थडे का गुब्बारा टांगा जाता हैं ठीक उसी प्रकार से भू-अध्यादेश अधिनियम अभियान ने राज्यात्मा की एकमात्र आवाज़ हिमांचल की तर्ज़ पर हों भू-क़ानून का गुब्बारा राज्य के 24 लाख परिवारों के दरवाजे में टांगने में सफलता प्राप्त की.. आज हिमांचल की तर्ज़ पर हों उत्तराखंड का भू-क़ानून राज्य के आमजनमानस के होठो पर विद्यमान हैं..

देवभूमि खबर

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