दून विश्वविद्यालय में महिला वैज्ञानिकों के प्रॉफेशनल डेवेलपमेंट हेतु भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन

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देहरादून ।दून विश्वविद्यालय में एसटीईएम में महिला साइंटिस्ट के लिए प्रोफेशनल एडवांसमेंट प्रोग्राम के तहत दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन साइंस और इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड (SERB), डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (DST) के सहयोग से किया गया. इसका मूल उद्देश्य महिला वैज्ञानिकों का रिसर्च में भागीदारी और रिसर्च की क्वालिटी को बढ़ाना है जिसमें महिलाओं की साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स (स्टीईएम) एजुकेशन पर फोकस के लिए मंथन किया गया।

साइंस और इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड (SERB), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के सचिव प्रो संदीप वर्मा, वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ मोनिका अग्रवाल, वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ शिव मोहन सिंह एवम फाइनांस डाईरेक्टर श्रीमति मधु वाधवान सिन्हा इस दो दिन की कार्यशाला में उपस्थित रहे।

इस कार्यक्रम में अपने उद्बोधन के दौरान डॉ मधु दीक्षित (जेसी बोस नेशनल फैलो) ने रिसर्च प्रपोजल को किस तरीके से तैयार किया जाए के संदर्भ में विस्तार से बताया. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला की बेहतर प्रपोजल कैसे लिखा जा सकता है और किन कमियों के कारण से रिसर्च प्रपोजल रिजेक्ट हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि अपने प्रपोजल में रिसर्च गैप के बारे में जरूर लिखें। रिव्यू ऑफ लिटरेचर प्रस्तावित रिसर्च से संबंधित होना चाहिए, रिसर्च के उद्देश्य आसानी से समझने योग्य होने चाहिए और साथी रिसर्च मेथाडोलॉजी स्पष्ट होनी चाहिए।

सीनियर साइंटिस्ट डॉ प्रथमा मानिकर ने रिसर्च से संबंधित नैतिक मूल्यों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि उनकी टीम द्वारा बनाये गये केमिकल को कोविड-19 वैक्सीन में इस्तेमाल किया गया है। अपने उद्बोधन में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नैतिक (मोरल) और आचार विचार (एथिक्स) से यदि काम किया जाए तो ऐसा काम पूरे समुदाय के लिए लाभकारी होता है। अब समय आ गया है कि शैक्षणिक संस्थानों, इंडस्ट्री और समाज को मिलकर काम करना चाहिए ताकि शोधों की गुणवत्ता बढ़ सके।

अमेरिका से आए डॉ उमेश बनाकर ने इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स के ऊपर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि आईपीआर में आज भी भारत चाइना से बहुत पीछे हैं जो की सोचनीय विषय है. भारतीय वैज्ञानिकों को खासकर की युवा वैज्ञानिकों को इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स के बारे में जागरूक और प्रोत्साहित करने की अति आवश्यकता है ताकि भारतीयों द्वारा किए जाने वाले पेटेंट की संख्या बढ़ाई जा सके.

चीफ साइंटिस्ट डॉक्टर संजय बत्रा ने अपने व्याख्यान में हाई इंपैक्ट जनरल में अपने शोध पत्रों को प्रकाशित कराने के लिए विस्तार से बताया और कहा कि शोध पत्र के रेफेरेंस सही होने चाहिए। प्लगिरिसम पर बहुत ध्यान देना चाहिए। रिजल्ट को सिस्टेमेटिक तरीके से लिखना चाहिए।

दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल ने कार्यशाला के समापन समारोह में कहा कि महिला वैज्ञानिकों की भागीदारी बढ़ाना माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का सपना है ताकि महिलाएं शैक्षणिक संस्थानों में और अधिक सशक्त होकर गुणवत्ता परक शोध में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकें। दून विश्वविद्यालय में आयोजित इस कार्यशाला ने अपने उद्देश्य को सार्थक किया है क्योंकि उत्तराखंड के सुदूर क्षेत्रों से बहुत सी महिला वैज्ञानिकों ने इस में प्रतिभाग किया और रिसर्च की बारीकियों को समझा। इसका प्रभाव यह पड़ेगा कि जब भी अपने क्षेत्रों में वापस जाएंगी और डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी जैसे संस्थानों से रिसर्च हेतु अनुदान के लिए आवेदन करेंगी तो उन्हें ग्रांट मिलने में आसानी रहेगी क्योंकि उन्होंने इस कॉन्फ्रेंस में रिसर्च प्रपोजल लिखने की बारीकियों को एक्सपर्ट से सीखा है।
इस कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर एचसी पुरोहित द्वारा किया गया। दून विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ एम एस मंदरवाल ने इस कार्यशाला में आए हुए सभी अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया एवं धन्यवाद ज्ञापित किया।

इस कार्यक्रम के दौरान प्रोफेसर आरपी मंमगई, प्रोफेसर रचना नौटियाल, प्रोफ़ेसर कुसुम, प्रो चेतना पोखरियाल, प्रो हर्ष पति डोभाल, डॉक्टर सविता तिवारी कर्नाटक, डॉ अरुण कुमार, डॉ नरेंद्र रावल, डॉ प्रीति मिश्रा, डॉ चारु द्विवेदी, डॉ हिमानी शर्मा, डॉ रचना गुसाई, डॉ आशाराम गैरोला, डॉ विकास, डॉ कोमल, डॉ सरिता, डॉ राजेश भट्ट, डॉ अनुज आदि उपस्थित रहे।

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