ऋषिकेष। नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि पर परमार्थ निकेतन आश्रम में विश्व शान्ति एवं पर्यावरण शुद्धि के लिये विशेष हवन किया गया। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती महाराज, साध्वी भगवती सरस्वती , परमार्थ परिवार के सदस्यों और परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों ने फिजीकल डिसटेंसिंग का गंभीरता से पालन करते हुये प्रातःकालीन प्रार्थना, नवरात्रि संदेश और हवन में सहभाग किया।
परमार्थ निकेतन में नौ दिनों सेे चल रही शक्ति साधना के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती महाराज ने सभी साधकों को सम्बोधित करते हुये कहा कि नवरात्रि आंतरिक शुद्धि एवं नई ऊर्जा संचय करने और सकारात्मक परिवर्तन का पर्व है। उन्होने आन्तरिक शुद्धि के साथ बाहरी वातावरण को भी शुद्ध और स्वच्छ रखने का आहृवान किया।
स्वामी जी ने कहा कि माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है- ‘अष्टवर्षा भवेद् गौरी।’ इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं। महागौरी की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है। माँ महागौरी की उत्पत्ति के समय वे आठ वर्ष की आयु की थी. इस कारण उन्हें नवरात्र के आठवें दिन पूजने से सुख और शान्ति मिलती हैI भक्तों के लिए वे अन्न पूर्णा के समान हैI यही कारण है कि भक्तगण अष्टम के दिन कन्याओं की पूजा और सम्मान करते हैं इस प्रकार भक्तगण माँ महागौरी की कृपा प्राप्त करते हैं। माँ महागौरी धन वैभव और सुख शान्ति देने वाली देवी है।
स्वामी जी ने कहा कि नवरात्रि के अवसर पर कन्यापूजन और भोज किया जाता है। यह एक अद्भुत संस्कृति है जो बेटियों को जीवन, जीने का अधिकार, गरिमा, सम्मान, शिक्षा और संरक्षण देने का संदेश देती है। वर्तमान समय में कई स्थानों पर लड़कियों के सामने कई विषमताओं परिस्थितियां है। बालिकाओं को शिक्षा का अधिकार, शिक्षा का महत्त्व, स्वास्थ्य और पोषण, गिरते हुए बाल लिंग अनुपात और सुरक्षा सहित कई समस्यायें हैं जिन पर चितंन करना और उन समस्याओं का समाधान करना जरूरी है।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि हमारे देश में आज भी बेटियों को शिक्षित करने से पहले शादी कर दी जाती है, इसे केवल एक ‘सामाजिक बुराई’ के रूप में ही नहीं देखा जाना चाहिये बल्कि यह तो बच्चों के ‘मौलिक अधिकारों’ का भी उल्लंघन है। हमारे देश में बाल विवाह अब भी एक चिंता का विषय है क्योंकि यह बच्चों को अच्छे स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा के अधिकार से वंचित करता है। कम उम्र में विवाह के कारण लड़कियों को हिंसा, दुर्व्यवहार और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। कम उम्र में विवाह किये जाने का लड़के और लड़कियों दोनों पर शारीरिक, बौद्धिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक प्रभाव पड़ता है, शिक्षा प्राप्ति के अवसर कम हो जाते हैं और व्यक्तित्व का विकास सही ढंग से नही हो पाता है इसलिये आज नवरात्रि के पावन अवसार पर यह संकल्प लें कि बेटियों को पहले शिक्षित करेंगे फिर ही विवाह करेंगे। बेटियाँ बोझ नहीं वरदान हैं। दहेज मानवता के लिये कलंक इसलिये जितनी जल्दी हो सके समाज से इस कलंक को दूर करना होगा।
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