हिमालय के संरक्षण हेतु किए गए कार्यों हेतु डॉ नित्यानंद युग युगांतर तक आने वाली पीढ़ियों के लिए रहेंगे प्रेरणा स्रोत: प्रेम बड़ाकोटी

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देहरादून । दून विश्वविद्यालय में डॉ नित्यानंद की 96वीं जन्म वर्ष के उपलक्ष में आज एक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया जिसकी मुख्य थीम “हिमालय, पर्यावरण एवं विकास” थी । इस कार्यक्रम की सब-थीम: पर्यावरण में परिवर्तन, आपदा प्रबंधन, हिमालय क्षेत्रों में खेती, हिमालय का समाज और कल्चर, प्राकृतिक स्रोतों का प्रबंधन- जल, जंगल और जमीन और सतत विकास थी ।

इस राष्ट्रीय वेबीनार में मुख्य अतिथि के तौर पर श्री प्रेम बड़ाकोटी ने प्रतिभाग किया और अपने उद्बोधन में डॉ नित्यानंद की जीवनी का संक्षिप्त एवं सटीक विश्लेषण प्रस्तुत किया । उन्होंने बताया कि वह 1971 में डॉ नित्यानंद के संपर्क में आए और मैंने पाया कि डॉ नित्यानंद हिमालय के प्रति बहुत संवेदनशील थे और उनका उत्तराखंड से विशेष लगाव था । डॉ नित्यानंद अक्सर कहा करते थे कि उत्तराखंड हिमालय का हिस्सा है और उत्तराखंड की समस्याएं हिमालय की समस्याएं है और साथ ही हिमालय की समस्याएं उत्तराखंड की है । देहरादून के डीबीएस कॉलेज में 1965 में उनकी नियुक्ति भूगोल विभाग में विभागाध्यक्ष के तौर पर हुई । उन्होंने 1965 से 1985 के दौरान उत्तराखंड के ऊपर अपना शोध कार्य उस समय में किया जब उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां अत्यधिक विषम थी और परिवहन के साधन सीमित थे । “द होली हिमालय: ए ज्योग्राफिकल इंटरप्रिटेशन ऑफ गढ़वाल” डॉ विद्यानंदके द्वारा लिखित एक अद्भुत कृति है. 1962 में चीन के आक्रमण से उत्पन्न समस्या के संदर्भ में उन्होंने विशेष शोध करने के साथ-साथ तिब्बत के विषय पर भी उन्होंने गहनता से अध्ययन किया एवं देश की प्रतिष्ठित संस्था साइंस कांग्रेस के मंच पर भी तिब्बत के विषय को प्रमुखता से उठाया । डॉ नित्यानंद शिक्षाविद होने के साथ-साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता भी थे और आपदाओं के दौरान वी अक्षर आपदा ग्रस्त इलाकों में लोगों की सेवा के लिए पहुंच जाते थे । वह अपने छात्रों का विशेष ध्यान एवं इसने भाव रखते थे एवं निर्धन छात्रों के लिए छात्रवृत्ति की व्यवस्था भी करवाते थे । उत्तराखंड की विभिन्न जनजातियों के कल्याण के लिए भी उन्होंने बहुत से कार्य करें जिसमें उनको शिक्षित करना प्रमुख रहा । उनका कहना था कि उत्तरांचल एक अलग राज्य होना चाहिए और इसके ऊपर उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी “उत्तरांचल प्रदेश क्यों? एक विवेचन” जो कि आगे चलकर उत्तराखंड राज्य निर्माण में अपने उद्बोधन में श्री प्रेम बड़ाकोटी ने डॉ नित्यानंद द्वारा स्थापित मनेरी (उत्तरकाशी) में “सेवा .आश्रम”, “गढ़वाल कल्याण संस्था” और “उत्तरांचल दैवी आपदा पीड़ित साहित्य समिति” के बारे में भी विस्तृत चर्चा की. उन्होंने कहा कि विषम परिस्थितियों में हिमालय के संदर्भ में पर्यावरण एवं मानवीय मूल्यों के संरक्षण में जो लोग अपना जीवन समर्पित कर देते हैं वह युग युगांतर तक आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत हो जाते हैं । अपने उद्बोधन में उन्होंने इस बात का सुझाव दिया कि डॉ नित्यानंद के द्वारा लिखित अध्ययन सामग्री और साहित्य आने वाली पीढ़ियों के लिए एनएनएचआरएससी अनुसंधान केंद्र, दून विश्वविद्यालय में भी उपलब्ध होना चाहिए ।

दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो सुरेखा डंगवाल ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ नित्यानंद का हिमालय के प्रति दृष्टिकोण के बारे में विस्तार से वर्णन किया । उन्होंने डॉ नित्यानंद के द्वारा किए गए कार्य को “हिमालय का विश्वकोश” की संज्ञा दी क्योंकि डॉ नित्यानंद ने पूरे हिमालय का भ्रमण किया और हिमालय की मूलभूत समस्याओं को बारीकी से समझा और निस्वार्थ भाव से उनको दूर करने का धरातल पर प्रयास किया. उन्होंने हिमालय के संरक्षण के लिए अपना संपूर्ण जीवन न्योछावर कर दिया । उनके कार्यों को ऋषि तुल्य समझा जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने अत्यंत दुष्कर एवं विषम परिस्थितियों में हिमालय पर शोध करना प्रारंभ किया जबकि उस काल में संसाधनों का अति अभाव था । यह उनकी दूरदर्शिता थी कि वह जानते थे कि यदि मानव समय पर नहीं जागा तो हिमालय क्षेत्र में होने वाली आपदाओं से मानवता खतरे में आ सकती है । प्रो डंगवाल ने इस बात पर जोर देकर कहा कि उन्हें “हिमालय के संरक्षक” के रूप में सदैव जाना जाएगा और दून विश्वविद्यालय में स्थापित नित्यानंद हिमालयन रिसर्च एंड स्टडीज सेंटर के द्वारा हिमालय के विभिन्न आयामों और पक्षों पर गुणवत्ता परक शोध कार्य एवं डॉक्यूमेंटेशन किया जाएगा । इस हेतु संपूर्ण विश्व से विषय विशेषज्ञ एवं उत्कृष्ट शोधार्थियों को इस सेंटर में हिमालय के विभिन्न पहलुओं जैसे की भौगोलिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक पहलुओं पर कार्य करने हेतु सुगम वातावरण उपलब्ध कराया जाएगा ।

इस कार्यक्रम में शोधार्थियों के द्वारा अपने शोध कार्यों का प्रस्तुतीकरण भी दिया गया । जिसमें पर्यावरण संरक्षण, आपदा प्रबंधन हिमालय में खेती के संदर्भ में समस्याएं एवं निराकरण और जल, जंगल, जमीन जैसे मुद्दों पर शोधार्थियों ने अपने शोध का निष्कर्ष प्रस्तुत किया ।

इस कार्यक्रम का संचालन डाँ0 सपना सेमवाल ने तथा स्वागत एवं विषय प्रवर्तन प्रोफेसर एच सी पुरोहित (डीन- स्टूडेंट वेलफेयर ) के द्वारा किया गया। इस नेशनल वेबीनार में प्रोफेसर डी डी चौनीयाल, प्रोफेसर हर्ष पति डोभाल, डॉ स्मिता त्रिपाठी, डॉ राजेश भट्ट, श्री ज्ञानेंद्र सिंह नेगी, डॉ राकेश भट्ट, डॉ अजीत पवार, डॉक्टर अंजली चौहान, डॉक्टर सोनू कौर, डॉ नरेश मिश्रा, प्रोफेसर शेखर जोशी, डाँ भवतोश शर्मा सहित कई शिक्षाविद् उपस्थित थे।

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