कैंची धाम मन्दिर में देर रात से ही हजारों की संख्या में बाबा नीम करौली महाराज के दर्शन को पहुंचे श्रद्धालु

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रिपोर्ट ललित जोशी

नैनीताल। सरोवर नगरी नैनीताल से लगभग 15 किलोमीटर दूर भवाली अल्मोड़ा मार्ग पर बसा कैंची धाम मन्दिर में आज नीम करौली महाराज का 58 स्थापना दिवस बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है।जहाँ हजारों की संख्या में बाबा के भक्तों की भीड़ लगी हुई है । बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए साथ ही मालपुआ प्रसाद ग्रहण करने के लिए श्रद्धालुओं का सुबह से ही तांता लगा हुआ दिखाई दे रहा है।यहाँ ऐसा प्रतीत होता है हजारों की संख्या में जो भीड़ भाड़ है वह खुद पर खुद आगे बढ़ती जा रही है ऐसा लगता है महाराज का कोई चमत्कार है । कोई धक्का मुक्की तक नही होती है।


यहाँ बता दें विगत दो वर्ष से नीम करौली महाराज कैंची धाम में स्थापना दिवस सादगी के साथ कोरोना की वजह से मनाया गया पर इस बार बाबा जी के भक्तों ने एक हफ्ते पहले ही मन्दिर में अपना डेरा डाल दिया था।देर रात से ही बाबा नीम करौली महाराज कैची धाम में भक्तों का आना जाना शुरू हो गया था।सुबह ब्रह्मुर्त में बाबा जी का पूजन अर्चना कर मालपुआ का भोग लगाकर भक्तों को प्रसाद वितरण शुरू कर दिया गया।बाबा नीम करौली महाराज के बारे मैं कुछ इस तरह से कहा गया है। एक बार मालपुआ बनाते बनाते घी खत्म हो गया तो उन्होंने पास की बहती नदी से दो कनस्तर पानी लिया और अपने भक्तों से कहा इसका प्रयोग करो बाबा जी कहने पर भक्तों ने ऐसा ही किया जो वास्तविक रूप में घी में बदल गया।नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में उनका जन्म 1900 के आसपास हुआ था।17 वर्ष की उम्र में ही उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी। उनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था। 11 वर्ष की उम्र में ही बाबा का विवाह हो गया था।

1958 में बाबा ने अपने घर को त्याग दिया और पूरे उत्तर भारत में साधुओं की भांति विचरण करने लगे थे।
उस दौरान लक्ष्मण दास, हांडी वाले बाबा और तिकोनिया वाले बाबा सहित वे कई नामों से जाने जाते थे। गुजरात के ववानिया मोरबी में तपस्या की तो वहां उन्हें तलईया बाबा के नाम से पुकारते लगे थे।एक बार बाबा फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट में सफर कर रहे थे। जब टिकट चेकर आया तो बाबा के पास टिकट नहीं था। तब बाबा को अगले स्टेशन ‘नीब करोली’ में ट्रेन से उतार दिया गया।

बाबा थोड़ी दूर पर ही अपना चिपटा धरती में गाड़कर बैठ गए। ऑफिशल्स ने ट्रेन को चलाने का आर्डर दिया और गार्ड ने ट्रेन को हरी झंडी दिखाई, परंतु ट्रेन एक इंच भी अपनी जगह से नहीं हिली।बहुत प्रयास करने के बाद भी जब ट्रेन नहीं चली तो लोकल मजिस्ट्रेट जो बाबा को जानता था उसने ऑफिशल्स को बाबा से माफी मांगने और उन्हें सम्मान पूर्वक अंदर लाने को कहा। ट्रेन में सवार अन्य लोगों ने भी मजिस्ट्रेट का समर्थन किया। ऑफिशल्स ने बाबा से माफी मांगी और उन्हें ससम्मान ट्रेन में बैठाया। बाबा के ट्रेन में बैठते ही ट्रेन चल पड़ी। तभी से बाबा का नाम नीम करोली पड़ गया। नीम करोली वाले बाबा के सैंकड़ों चमत्कार के किस्से हैं।

उत्तराखंड के नैनीताल के पास कैंची धाम में बाबा नीम करौली 1961 में पहली बार यहां आए और उन्होंने अपने पुराने मित्र पूर्णानंद जी के साथ मिलकर यहां आश्रम बनाने का विचार किया था। बाबा नीम करौली ने इस आश्रम की स्थापना 1964 में की थी।नीम करोली बाबा का समाधि स्थल नैनीताल के पास पंतनगर में है। यह एक ऐसी जगह है जहां कोई भी मुराद लेकर जाए तो वह खाली हाथ नहीं लौटता। यहां बाबा

नीम करोली बाबा के भक्तों में एप्पल के मालिक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्क और हॉलीवुड एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स का नाम लिया जाता है। कहा जाता है कि इस धाम की यात्रा करके उनका जीवन बदल गया।

15 जून को देवभूमि कैंची धाम में मेले का आयोजन होता है और यहां पर देश-विदेश से बाबा नीम करौली के भक्त आते हैं। इस धाम में बाबा नीम करौली को भगवान हनुमान का अवतार माना जाता है। देश-विदेश से हजारों भक्त यहां हनुमान जी का आशीर्वाद लेने आते हैं। बाबा के भक्तों ने इस स्थान पर हनुमान का भव्य मन्दिर बनवाया। यहां 5 देवी-देवताओं के मंदिर हैं। इनमें हनुमानजी का भी एक मंदिर है। बाबा नीम करोली हनुमानजी के परम भक्त थे और उन्होंने देशभर में हनुमानजी के कई मंदिर बनवाए थे।
रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) ने नीम करोली बाबा के चमत्कारों पर ‘मिरेकल ऑफ़ लव’ नामक एक किताब लिखी इसी में ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ नाम से एक घटना का जिक्र है। बाबा हमेशा कंबल ही ओड़ा करते थे। आज भी लोग जब उनके मंदिर जाते हैं तो उन्हें कंबल भेंट करते हैं।

बाबा नीम करौली महाराज के दो पुत्र और एक पुत्री हैं। ज्येष्ठ पुत्र अनेक सिंह अपने परिवार के साथ भोपाल में रहते हैं, जबकि कनिष्ठ पुत्र धर्म नारायण शर्मा वन विभाग में रेंजर के पद पर रहे थे। हाल ही में उनका निधन हो गया है।

उन्होंने अपने शरीर का त्याग 11 सितंबर 1973 को वृंदावन में किया था। बताया जाता है कि बाबा के आश्रम में सबसे ज्यादा अमेरिकी ही आते हैं। आश्रम पहाड़ी इलाके में देवदार के पेड़ों के बीच स्थित है।

नैनीताल से ललित जोशी की विशेष रिपोर्ट

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