देहरादून। उत्तराखंड के वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1976 में प्रस्तावित संशोधन करके निजी भूस्वामियो को पेड़ो को काटने की पूरी आजादी देने के विचार पर पर्यावरण प्रेमियों ने आक्रोश व्यक्त किया है।
इनका कहना है कि स्थानीय निवासियों को इनकी आवासीय जरूरतों को देखते हुए एक सप्ताह के भीतर आनलाईन अनुमति की प्रकिया अपनाकर सरलीकरण किया जाना उचित है।परंतु भू माफियाओं, वनमाफियाओं और रियल एस्टेट माफियाओं द्वारा उत्तराखंड में लाभार्जन/ व्यवसाय हेतु खरीदे गए विशाल निजी भूखंडों पर संभावित सैकड़ों हजारों पेड़ों को काटने की आजादी देने से पूरे उत्तराखंड को कंक्रीट के जंगलों में बदलते देर नहीं लगेंगी। पर्यावरण संरक्षण के हिमायती कार्यकर्ताओं द्वारा शीघ्र ही इस विषय पर बैठक आमंत्रित कर सरकार को सुझाव ज्ञापन भेजे जाने की तैयारी भी शुरू हो गई है।
प्रतिक्रिया व्यक्त करने वालों में जगमोहन मेहंदीरत्ता, गणेश कोटनाला, चौधरी, ओमवीर सिंह, कमला पंत, प्रदीप कुकरेती, मनोज ध्यानी, सुशील त्यागी, बीना शर्मा, उमेंद्र सिंह ठाकुर,दिनेश भंडारी, आकेश भट्ट आदि शामिल हैं।
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