वनों में आग की रोकथाम के लिए कई तकनीकी उपकरणों की भी व्यवस्था ज़रूरी:नेगी

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अल्मोड़ा -उतराखंड राज्य में अप्रैल व मई तक जंगलों में आग लगने जंगली जानवरों व पशु पक्षियों के साथ जंगली जड़ीबूटी नष्ट होती है ।सरकार को गर्मियों में लगने वाली आग के प्रति विशेष नीति की आवश्यकता है


सामाजिक कार्यकर्ता प्रताप सिंह नेगी ने कहा कि इस गर्मी के समय में जंगलों में आग लगने सबसे ज्यादा दिक्कत जंगली जानवरों व पशु पक्षियों को है। ज्यादा आग की रफ्तार से कुछ जंगली पशु पक्षियों की मौत भी हो जाती है। दूसरी तरफ उत्तराखंड राज्य में कुछ जंगली पेड पौधे आयुर्वेदिक औषधियां बनाने के काम आते हैं।इस आग की उजह से व पेड पौधे भी नष्ट हो जाते हैं।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड राज्य के ठंडे क्षेत्रों पहाड़ों में काफल, हिसालु, किरमोडी, किम, व्योडू आदि फल उगते यही अप्रैल व मई के सीजन में ये फलों होने इधर आग लगना उत्तराखंड के लिए अभिसाफ है।
काफल, हिसालु किरमोडी,व्योडू व किम फल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक ही नहीं बल्कि कई प्रकार की बिमारियों को खत्म करते हैं। चीड के पेड के नीचे या चीड के जंगलों में बैठने से टीबी की बिमारियों के लिए रोकथाम है।भाज का पेड ज़मीन से पानी खींचता है।जिस किसी जंगल पर चार पांच बातें के पेड एक साथ होते हैं उस जगह पर हमेशा पानी मिलता है।भांज के पेड़ों के नीचे से निकला हुआ पानी पीने से पेट साफ व गैस की बिमारियों में रोकथाम होती है।

श्री नेगी ने कहा कि उत्तराखंड वन बिभाग ने जंगलों में आग न लगाने के लिए सख्त निर्देश भी दिए और आग की रोकथाम के लिए कई तकनीकी उपकरणों की भी व्यवस्था की है।फिर भी आग लगाने की परम्परा पर कोई कंट्रोल नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि अगर उतराखड राज्य की ज़नता ने आग लगाने की प्रथा पर रोक नहीं लगाई तो आने वाले भविष्य में उत्तराखंड राज्य के जंगल धीरे धीरे नष्ट हो जायेंगे। भविष्य में जंगलों की कमी के कराण आक्सीजन की कमी होगी जनता अनेक प्रकार की बिमारियों का शिकार हो सकते हैं।।

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