हिंदू शास्त्रों के अनुसार करवा चौथ का त्यौहार आपसी प्रेम और विश्वास का पर्व है :चिदानंद महाराज

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ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द महाराज ने कहा कि हिंदू शास्त्रों और रीति-रिवाजों के अनुसार करवा चौथ का त्यौहार आपसी प्रेम और विश्वास का पर्व है। करवा चैथ का व्रत विवाहित महिलाएं अपने अपने जीवनसाथी के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और दीर्घ आयु हेतु रखती हैं। कन्याएं उत्तम जीवनसाथी को पाने की कामना हेतु इस व्रत को करती है। पति की लंबी उम्र हो जाए और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हो इस कामना से महिलाएं चंद्रमा की पूजा कर व्रत को पूर्ण करती हैं। नारी के अद्भुत समर्पण का पर्व है।
गीता में कहा गया है कि ’’शरीर तो नश्वर है जो भी धरती पर प्राणी है सभी का शरीर नष्ट होगा केवल आत्मा-अमर है। आत्मा, मनुष्य के कर्मों के अनुसार अलग-अलग शरीर धारण करती रहती है इसलिये व्रत के साथ जीवन में विचार, वाणी और कर्म की पवित्रता और शुद्धता भी होना नितांत आवश्यक है। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते हुये कहा है कि’’जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रवंरुवं जन्म मृतस्य च। तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।’’ कोई भी सदा नहीं रहता। आत्मा विभिन्न योनियों से होकर गुजरती है। जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी होगी परन्तु पर्व और त्योहार आपसी मतभेदों को मिटाने का और आपस में प्रेम के संचार का सबसे श्रेष्ठ माध्यम है। व्रत और त्योहार से घर और चित्त की शुद्धि होती है जिससे शांति प्राप्त होती है। चित्त शुद्धि से शांति और फिर समृद्धि तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
 

भारत मूलतः विविधताओं का देश है, विविधताओं में एकता ही भारत की प्रमुख विशेषता है और यही संस्कृति भारत की स्वर्णिम गरिमा को आधार प्रदान करती है। किसी भी सांस्कृतिक विविधता को आत्मसात करना भारत और भारतीयों के लिये सहज है। भारत की सांस्कृतिक विविधता के बावजूद भी कुछ वर्षो से लोगों के मध्य आपसी सद्भाव में कमी आ रही है जिसका समाज पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ रहा है। वर्तमान समाज को सांस्कृतिक विविधता के साथ सांप्रदायिकता को भी ठीक से समझना होगा। सांप्रदायिकता से तात्पर्य किसी व्यक्ति का अपने समुदाय के प्रति विशेष लगाव परन्तु दूसरे समुदाय का विरोध बिल्कुल नहीं है।
  सांप्रदायिकता को संकीर्ण मनोवृत्ति से जोड़ते रहेंगे तब तक धर्म और संप्रदाय के नाम पर राष्ट्र विभाजित होता रहेगा और आये दिन सांप्रदायिकता के नाम पर समाज विभाजित होता रहेगा जिससे रूढ़िवादी सिद्धांतों में विश्वास, असहिष्णुता और दूसरे धर्मों के प्रति नफरत फैलते रहेगी इसलिये मेरे और तेरे की संस्कृति से उपर उठकर आपसी सद्भाव को विकसित करना होगा। संकीर्ण मनोवृति सांप्रदायिकता भारत के राष्ट्रीय एकीकरण की दिशा में सबसे बड़ी बाधा है। हमारा प्यारा भारत एवं विशाल और विशेष देश है, जहां सबको सम्मान मिला है। हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम अपने स्वार्थों से उपर उठकर देश के लिये सोंचे। देश बचेगा तो सब बचेगा। देश सुरक्षित तो सब सुरक्षित।

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