रिपोर्ट । ललित जोशी।
नैनीताल । सरोवर नगरी व उसके आसपास फूलदेई पर्व अब केवल औपचारिक तक ही सीमित रह गया। जो उत्साह आज से लगभग चालीस वर्ष पूर्व देखा जाता था वह अब नहीं दिखाई देता है।
कुछ बच्चे सुबह स्कूल जाने से पहले आसपास के घरों में एक थाली में फूल ,गुड़, चावल आदि लेकर फूलदेई छमा देइ जतुक देला ऊतक सही कहते हुए देली में फूल आदि डालते हैं। जिसके चलते उनको गुड़, चावल, व दक्षिणा दी जाती है।
इस माह के त्योहार का यू भी एक महत्व है उत्तराखंड का राज्य पुष्प बुरांस भी इस समय खिल जाता है। खेतों में पीली सरसों व फलों के पेड़ों में नये कोपलें आ जाती हैं। ससुराल में जो महिलाएं हैं उनको भी भिटौली इसी माह दी जाती है। त्योहार में भी अब वह उत्साह हल्के हल्के ठंडे बस्ते में जाने लग गया है।
यहाँ बता दें किसी भी त्योहार को ले लीजिये कही भी कोई रौनक नही मिलेगी। फूलदेई की रौनक तो इसलिये भी हल्की हो गयी बच्चों के स्कूल खुले हुए हैं। फिर बच्चे इधर उधर जाने से भी कतरा रहे हैं।