आपदाओं को न्योता दे रही सरकार: भावना पांडे

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देहरादून। राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने चमोली जिले के ऋषिगंगा जल सैलाब में हताहत हुए लोगों के लिए दुख जताया है। उन्होंने कहा कि इस घटना से मेरी संवेदनाएं प्रभावित परिवारों की साथ हैं। उन्होंने सवाल किया कि आखिर हम हिमालय में इतने बड़े प्रोजेक्ट्स क्यों लगा रहे हैं? इस तरह के परियोजनाएं प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि भले ही ग्लेशियर टूटने से यह घटना हुई हो, लेकिन बड़ी परियोजनाएं हमारे हित में नहीं हैं। इन परियोजनाओं की बजाए हमें नदी के साथ ही बिजली उत्पादन के प्रोजेक्ट्स करने चाहिए।

राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने कहा कि केदारनाथ आपदा के बाद सरकारों को हिमालय के प्रति गंभीर हो जाना चाहिए था। हमें समझना होगा कि उत्तराखड को बड़े पावर प्रोजेक्ट नहीं चाहिए। इसकी बजाए 10 मेगावाट की बिजली उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। उन्होंने वाडिया के वैज्ञानिकों से कहा कि आखिर हिमालय में हो रही इस तरह की घटनाओं के बारे में उन्हें पहले कैसे नहीं पता चला? भावना पांडे ने कहा कि चिपको आंदोलन की प्रणेता गौरा देवी ने पर्यावरण संरक्षण की मुहिम छेड़ी। सारा विश्व रैंणी गांव को पर्यावरण संरक्षण के नाम से जानता है लेकिन इस ऐतिहासिक गांव के ठीक नीचे बांध बना कर प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की जा रही है। क्या एनजीटी और पर्यावरण एजेंसी क्या छोटे-छोटे लोगों को परेशान करने के लिए हैं? इनको बांध के लिए एनओसी मिल गयी। सरकार बड़े प्रोजेक्ट इसलिए लाती है क्योंकि इसमे ंउनको कमीशन मिलता है। छोटे पावर प्रोजेक्ट से भी उत्तराखंड को रोशन किया जा सकती है। राज्य आंदोलनकारी भावना पंाडे ने कहा कि जब पहाड़ में जब इतनी बड़ी सुरंगें बनाई जा रही हैं, पहाड़ काटे जा रहे हैं तो आपदाएं आंएंगी ही। आखिर सरकार जनता को खतरे में क्यों डाल रही है? छोटे-छोटे प्रोजेक्ट ही लगाए जाएं।

उन्होंने सरकार से अपील है कि इस मामले की जांच भी की जाए कि राज्य गठन के समय में जो वोटर महज 15 लाख था आज वो 50 लाख कैसे हो गया? यह अवैध वोटर कहां से आ गये? नेताओं ने नदी किनारे गरीब जनता को बसा दिया। उन्होंने नदी किनारे अपने घर बसा लिए। कुछ सेना से रिटायर हो गये तो उन्होंने शहर मे ंबसना चाहा तो नेताओं ने उन्हें यह अवैध जमीन बेच दी। कुछ जेवर बेचकर या गाडे़ पसीने की कमाई लेकर आए तो वो भी नदी किनारे बसा दिये गये। इनके साथ बाहरी लोग भी इन झुग्गी बस्तियों में बस गये। यहां शराब, नशा और अन्य आपराधिक गतिविधियां हो रही हैं। सरकार बताए कि अवैध कब्जे करा कर 25 लाख फर्जी वोटरों के लिए क्या करेगी सरकार? कभी प्राकृतिक आपदा आ जाए तो इन नदी नालों में बसे लोगों का क्या होगा जो विधायक गणेश जोशी ने कुठाल गेट से काठबंगला तक और विधायक उमेश काऊ ने रिस्पना तक बस्तियां बसाई हैं। इन लोगों की जान जोखिम में डाली है। इस बात को संज्ञान में लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बाद में मुआवजा देने की बजाए इन लोगों को विस्थापित कर अच्छे आवास दिये जाएं। आज पूरा उत्तराखंड नदी-नालों के किनारे बसा है। अधिकांश शहरों में नेताओं के संरक्षण में वन और नदियों की जमीनों पर अतिक्रमण कर लिया गया है। विधानसभा चुनाव तक इन लोगों को घर दिये जाएं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को कुठाल गेट से रिस्पना तक भ्रमण करना चाहिए तो उनको पता चल जाएगा कि उनको सबसे फिसड्डी सीएम क्यों कहा गया है।
राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने पूर्व सीएम हरीश रावत पर तंज कसा कि प्रदेश में आपदा आई है और वो किसानों के बीच बार्डर पर बैठे हैं। हरदा को आपदा प्रभावितों के बीच होना चाहिए था। भावना ने चुटकी ली कि क्या हरदा को लाग्यो छौव। हरदा कभी मुनस्यारी तो कभी दिल्ली होते हैं। उन्होंने कहा कि हरदा का कुछ नहीं होने वाला है। कांग्रेस में इनको तवज्जो नहीं मिल रही हें। कांग्रेस के पोस्टर बैनर में भी इनका नाम नहीं आता है। अपने बेटे को राजनीति में स्थापित करने के लिए दौड़भाग कर रहे हैं। इस उम्र में एक दिन में 400 किलोमीटर का सफर करते हो यह आपके लिए ठीक नहीं है। उन्होंने हरदा को सलाह दी कि अब घर पर आराम करो।

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