देहरादून। पूर्व लोकसभा प्रत्याशी इं० डीपीएस रावत ने एक प्रेस वार्ता में कहा कि दफन हो जाएगी राज्य परिकल्पनाओं व शहीदों के सपने । उत्तराखंड राज्य के गठन को 22 साल हो गए और बीते 22 साल राज्य परिकल्पनाओं की कब्र खोदने सरीखे काम में जुटे होने का आभास देते हैं 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश राज्य पुनर्गठन विधेयक परिणाम स्वरूप अस्तित्व में आया और भारत की 26 वें राज्य उत्तराखंड को राज्य गठन के दिन ही राज्य आंदोलनकारी जन अपेक्षाओं व राज्य आंदोलन के शहीदों के सपनों का राज्य मानने से इंकार कर रहे थे । तो उसकी वाजिब वजह थी सबसे पहला सवाल उत्तराखंड को बेमेल खिचड़ी बना देने का था। उत्तराखंड राज्य की 8 पहाड़ी जिला देहरादून ,टेहरी गढ़वाल ,पौड़ी गढ़वाल ,चमोली ,उत्तरकाशी ,अल्मोड़ा ,पिथौरागढ़, नैनीताल जिलों की भौगोलिक सांस्कृतिक और विकास संबंधी मांगों को ध्वनित करती जनता की पीड़ा थी । मूलभूत समस्याओं से जूझते पहाड़ के लिए अलग राज्य में अपने विकास का स्वप्पन देख रहे थे।
इं० डीपीएस रावत कहां कि उत्तराखंड के निर्माण का जो पहला सरकारी दस्तावेज है वह मंत्रिमंडलीय कौशिक समिति है ,जनवरी 1994 में गठित तत्कालीन नगर विकास मंत्री रमाशंकर कौशिक उतर प्रदेश सरकार की अध्यक्षता में गठित समिति ने 13 सिफारिशों के साथ उत्तराखंड राज्य के गठन की संस्तुति की थी जिसमें 8 पर्वतीय जिलों को मिलाकर उत्तराखंड राज्य बनाने और गैरसैण कुमाऊं और गढ़वाल के सेंटर में राजधानी की स्पष्ट संस्तुति की गई थी । कौशिक समिति की सिफारिश जो उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा स्वीकृति भी थी । जो पढ़ते हुए 27 संशोधनों के साथ उत्तराखंड राज्य का गठन किया गया परिणाम स्वरूप 22 सालों में पहाड़ बदहाल होत गए । पलायन बड़ा और स्थितियां पहाड़ों के अस्तित्व तक आ पहुंची है सन 2001 की जनगणना में उत्तराखंड के 10 पर्वतीय जिलों उत्तरकाशी चमोली रूद्रप्रयाग टिहरी गढ़वाल पौड़ी गढ़वाल बागेश्वर अल्मोड़ा चंपावत नैनीताल की आबादी 45,21718 जबकि तीन मैदानी जिले हरिद्वार उधमसिंह नगर देहरादून की आबादी 39,57,844 थी सन 2011 की जनगणना में यह क्रमश 4,4824, 796 व 52,73,956 हो गई । मैदानी जिलों की 8 प्रतिशत भूभाग में राज्य गठन के 10 सालों में जहां पहाड़ी जिलों में जनसंख्या 3,12,078 बढ़ी वहीं मैदानी तीन जिलों में 13,16,112 बड़ी।
पहाड़ और मैदान की विभिन्न स्थितियों में तुलना करते हैं तो पहाड़ों में जहां मकान बनाने की लागत बारह सो रुपए प्रति फुट आती है । वही पहाड़ी क्षेत्र में तीन हजार से चार हजार रुपये प्रति फुट आती हैं । मैदानी क्षेत्रों में 1 घंटे में 50 किलोमीटर दूरी तय होती है और पहाड़ में 20 से 25 किलोमीटर ही तय होती है। इको सेंसेटिव जोन केंद्रीय वन व जंतु संरक्षण कानूनों का मैदानी क्षेत्रों में वनों के अभाव में अधिकार असर नहीं है, जबकि पहाड़ों से बनाच्छादित होने के कारण सभी विकास योजनाएं प्रभावित हुई है।सबसे डरावनी स्थिति सन 2026 के परिसीमन की है जिस समय उत्तराखण्ड की 10 पर्वती जिलों की संख्या 56,21,796 तथा तीन मैदानी जिलों की जनसंख्या लगभग 97,00,000 लाख होने का अनुमान है।
इं० डीपीएस रावत कहां कि कुछ राष्ट्रीय राजनीतिक दल वर्ष 2019 जिस प्रकार से गाहे-बगाहे उत्तराखंड से बिजनौर मुरादाबाद रामपुर सहारनपुर नजीमाबाद के क्षेत्रों को उत्तराखंड में मिलाने की वकालत करते रहे हैं, यदि यह षड्यंत्र सफल हुआ तो मैदानी आबादी में पचास लाखः की बृधि होगी और पहाड़ की जनसंख्या आधी रह जाएगी।
सन 2008 में हुए विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन में मैदानी क्षेत्र से 34 व पर्वती क्षेत्र से 36 विधायक हैं। 20 सालों के राज्य के संसाधनों के बंटवारे में राज्यों की असफलता नेतृत्व पर प्रसनचिन्ह है । 2017 में उत्तर प्रदेश की मंत्री धर्मपाल सिंह ने परिसंपत्तियों के बंटवारे मे हेड और टेल दोनों अपने पास ही बताई थी। मूलभूत सुविधाओं रोजगार / स्वरोजगार शिक्षा चिकित्सा लघु /कुटीर उद्योग, क्षेत्र में पहाड़ों के साथ हुआ बहुत बड़ा अन्याय हुआ। राज्य परिकल्पनाओं का पलीता लगाता दिख रहा है ।
इं० डीपीएस रावत कहा कि सन 2026 के परिसीमन से पहले दिन का क्षेत्रफल के फार्मूले को लागू नहीं करवा सके तो यह राज्य परिकल्पनाओ और शहीदों के सपनों की कब्र का राज्य साबित होगा , और पहाड़ सबसे पहले बर्वाद हो जायेगा और आम पहाड़ी अपना सब कुछ गवा बैठेगा।