विधानसभा में विधानसभा सचिव की स्थाई नियुक्ति एवं नई नियुक्तियों को पारदर्शी चयन प्रक्रिया के तहत

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उत्तराखंड
विधानसभा में विधानसभा सचिव की स्थाई नियुक्ति एवं नई नियुक्तियों को पारदर्शी चयन प्रक्रिया के तहत करने ,विधानसभा में चयन हेतु परीक्षा शुल्क माफ करने,प्राइवेट एजेंसी के बजाय सरकारी एजेंसी के माध्यम से करने बाबत एक ज्ञापन उत्तराखंड क्रांतिदल द्वारा महामहिम राज्यपाल महोदय को अपर जिलाधिकारी के माध्यम से दिया गया।
केंद्रीय प्रवक्ता विजय कुमार बौड़ाई ने कहा कि उत्तराखंड विधानसभा में विधानसभा सचिव का पद 30 जून 2018 से रिक्त चल रहा है जिस पर अभी तक नियुक्ति नहीं हो पाई है तथा विधानसभा केशोध अधिकारी को विधानसभा सचिव का पदभार सौंपा गया है जो कि विधानसभा सचिवालय नियमावली का घोर उल्लंघन है। राज्य की सर्बोचच संस्था विधानसभा में नियमों का पालन ना होना दुर्भाग्यपूर्ण है । उत्तराखंड विधानसभा में सचिव जैसा महत्वपूर्ण पद 30 जून 2018 रिक्त चला आ रहा है। विधानसभा सचिवालय नियमावली अनुसार उक्त पद पर नियुक्ति हेतु प्रक्रिया रिक्त होने से 6 माह पूर्व शुरू हो जानी चाहिए जो कि अभी तक भी नहीं की गई है ।
उत्तराखंड उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय नियमावली 2011 के अनुसार सचिव के पद पर सचिवालय के मौलिक रूप से नियुक्ति अपर सचिव में श्रेष्ठता के आधार पर पदोन्नति द्वारा परंतु यह कि पात्र अभ्यर्थी की अनुपलब्धता की दशा में अथवा अपरिहार्य परिस्थितियों में राज्यपाल अध्यक्ष के परामर्श से सेवा स्थानांतरण द्वारा नियुक्त कर सकेगा परंतु यह और कि जब तक कि सचिव के पद हेतु विधान सभा सचिवालय सेवा को कोई पात्र अधिकारी उपलब्ध न हो तब तक उच्च न्यायिक सेवा के जिला जज श्रेणी के अधिकारी द्वारा उक्त पद प्रतिनियुक्ति से भरा जा सकेगा लेकिन माननीय न्यायालय उच्च न्यायालय के द्वारा उच्च न्यायिक सेवा के अधिकारी का नाम संदर्भित किए जाने के बावजूद विधान सभा द्वारा उच्च न्यायिक सेवा के अधिकारी को कार्यभार नही सौंपा गया। विधानसभा में तदर्थ रूप से नियुक्त शोध अधिकारी को राज्य की सर्वोच्च संस्था के सचिव का प्रभार लगातार दिया जाना उत्तराखंड के लिए दुर्भाग्य का प्रतीक है।

एक शोध अधिकारी को जो कि अभी तक तदर्थ नियुक्ति में रूप में नियुक्त है, को विधानसभा सचिव बना देना पूर्णतया नियम विरुद्ध है । प्रदेश की सर्वोच्च संस्था में नियमों को ताक पर रखकर विधानसभा सचिव पद की भर्ती प्रक्रिया नाअपनाया जाना और पूर्ण रूप से शोध एवं संदर्भ अधिकारी को विधानसभा सचिव का पदभार दिया जाना बेहद गंभीर मामला है। श्री बौड़ाई ने कहा
कि विधानसभा में रिक्त पदों की नियुक्ति हेतु प्रक्रिया चल रही है लेकिन सरकारी भर्ती एजेंसियों जैसे लोक सेवा आयोग ,अधिनस्थ चयन आयोग एवं प्राविधिक शिक्षा परिषद के होते हुए भी प्राइवेट एजेंसी के माध्यम से भर्ती की प्रक्रिया अपनाई गई जो कि पूर्ण तया गलत है एवं पूर्ण पारदर्शिता से कोसों दूर है ।
श्री बौड़ाई ने कहा कि उत्तराखंड के गरीब बेरोजगार एवं वर्तमान में कोरोना से प्रभावित आर्थिक तंगी के बीच भी विधानसभा में आवेदन पत्रों के लिए ₹975 का शुल्क एवं अनुसूचित जाति जनजाति के लिए ₹850 का शुल्क लेकर उत्तराखंड के मूल निवासियों को इस प्रक्रिया से बाहर करने की सोची समझी साजिश है ,जबकि सरकार द्वारा उपरोक्त परिस्थितियों को देखते हुए सभी भर्तियों पर शुल्क माफ कर दिए हैं लेकिन विधानसभा में निकाली भर्तियों के लिए ₹975 का शुल्क अदा करना जरूरी है जिसके कारण कई लोग इस परीक्षा में अपना आवेदन नहीं कर पा रहे हैं तथा उत्तराखंड राज्य वेरोजगारो के लिए दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है ।
राज्य के सर्बोचच संवैधानिक संस्थान में उपरोक्त अनियमितता होना किसी भी संवैधानिक व्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं है जब कानून बनाने वाली सर्वोच्च संस्था में ही कानून का उल्लंघन हो रहा है तो उस संस्था एवं प्रदेश में किस प्रकार कानून का राज रहेगा एवं किस प्रकार संवैधानिक व्यवस्था बचेगी या एक गंभीर प्रश्न राज्य के समक्ष उत्पन्न हो रहा है इसलिए इसमें त्वरित कार्रवाई कर सचिव की स्थाई नियक्ति करने,परीक्षा प्राइवेट एजेंसी के बजाय सरकारी एजेंसी से करने तथा विधानसभा में रिक्त पदों हेतु परीक्षा में लिये जा रहे शुल्क को माफ किया जाना आवश्यक है। ज्ञापन देंते समय केंद्रीय अध्यक्ष युवा प्रकोष्ठ श्री राजेन्द्र सिंह विष्ट, अशोक नेगी, विपिन रावत,किरण रावत, मीनाक्षी घिल्डियाल, मनोज मिश्रा एडवोकेट ,एस एन बिष्ट एडवोकेट, आर के सांख्यधर,भगवती डबराल, श्री राणा जी आदि उपस्थित रहे।

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