गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है :स्वामी चिदानन्द सरस्वती

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ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में फिज़ीकल डिसटेंसिंग का गंभिरता से पालन करते हुये सर्वेश्वर मन्दिर प्रांगण में भगवान श्री कृष्ण, गोवर्धन और गाय की पूजा की गयी। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज और साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन अवसर पर परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमार, आचार्य और सभी सदस्यों ने भावपूर्ण भजन और संगीतमय वातावरण में भगवान श्री कृष्ण को छप्पनभोग अर्पित कर श्रद्धाभाव से पूजा-अर्चना की।

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने अन्नकूट और गोवर्धन पूजा का पौराणिक महत्व बताते हुये कहा कि कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा अर्थात दीपावली के अगले ही दिन गोवर्धन पूजा का अद्भुत महोत्सव होता है औेर यह महोत्सव अलौकिक संदेश देता है। गोवर्धन पूजा का सम्बंध प्रकृति के साथ से है। यह पर्व हमें प्रकृति के सान्निध्य में रहकर प्रकृतिमय जीवन जीने का संदेश देता है। भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलाधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उँगली पर ही उठाकर रखा था। गोप-गोपिकाएँ और सारे ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत के नीचे सुखपूर्वक रहे तथा सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा फिर सभी ने मिलकर पूजा की। भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों से कहा कि गोवर्धन ने तुम्हें बचाया है अतः गोवर्धन ही तुम्हारे देव हैं, तब से हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है।
स्वामी जी ने कहा कि गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। हमारी संस्कृति में गाय तो पूजनीय है और पवित्र है। गौ माता अपने दूध से भी को स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करती हैं। आईय गोर्वद्धन पूजा के अवसर पर गौ संवर्द्धन का संकल्प लें, वृक्षारोपण करें, जल बचायें, पराली न जलायें, वायु प्रदूषण न करें, सिंगल यूज़ प्लास्टिक का उपयोग बंद करें इससे पर्यावरण भी बचेगा और प्रकृति भी बचेगी।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने आज के पावन अवसर पर भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक भाईदूज का महत्व बताते हुये कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज मनाया जाता है। यह पर्व भाई के प्रति बहन के प्रेम और समर्पण का प्रतीक है।आज के दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाकर उसकी खुशहाली की कामना करती हैं। भाई और बहन का रिश्ता बड़ा अद्भुत और पवित्र प्रेम का प्रतीक होता है। पर्वो और त्यौहारों के वास्तविक महत्व को समझें और अपनी आने वाली पीढ़ियों तक भी इस संदेश को पहुंचायें। भाई और बहन दोनों मिलकर एक पौधा लगायें। प्रेम भी बढ़ेगा और पर्यावरण भी बचेगा।
स्वामी जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति ने जो पर्वो का उपहार दिया है आईये उन पर्वो का वास्तविक मर्म समझे और प्रकृति संरक्षण हेतु योगदान प्रदान करें।

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