शोध कभी समाप्त न होने वाली प्रक्रिया है : प्रोफेसर बी पी सिंह

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देहरादून।दून विश्वविद्यालय के प्रबंध शास्त्र विभाग द्वारा आयोजित एक सप्ताह के शोध प्रविधि कार्यशाला के समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के पूर्व आचार्य एवं दिल्ली स्कूल ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज व रिसर्च के अध्यक्ष प्रोफेसर बी पी सिंह ने कहां की शोध कभी समाप्त होने वाली प्रक्रिया नहीं है। शोध एक लगातार अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है ।शोधार्थी को समय के अनुरूप विषय वस्तु एवं अध्ययन सामग्री का चयन करना होगा ।उन्होंने शोध की गुणवत्ता और शोध की व्यापकता तथा सार्वभौमिकता को परिभाषित करते हुए कहा कि वही शोध समाज के लिए कल्याणकारी हो सकते हैं जिनमें वास्तविकता व तथ्यों की कसौटी पर प्रमाणित किया जा सके ।

प्रोफेसर बी पी सिंह ने कई उदाहरणों के साथ शोध की सार्थकता को परिभाषित किया उन्होंने कहा कि कई वर्ष पूर्व परिभाषित सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का देशकाल के साथ समावेश किया जाना आवश्यक है ।प्रोफ़ेसर सिंह ने कहां की साठ वर्ष पूर्व चीन के साथ रिश्ते और आज के रिश्ते एक समान दृष्टि से विश्लेषण एवं परिभाषित नहीं किए जा सकते इसी प्रकार प्रबंधन एवं व्यवसायिक जगत में निर्णय व चुनौतियां के विश्लेषण हेतु विषय वस्तु सदैव गतिमान रहती है और शोधार्थी को शोध कार्यो के संचालन में इन विषयों पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए।

समापन सत्र के मुख्य अतिथि त्रिपुरा केंद्रीय विश्वविद्यालय अगरतला के कुलपति प्रोफेसर जी पी परसाई ने कहा कि शोध की गुणवत्ता राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनने जा रहा है। उन्होंने शोधार्थियों को शोध कार्य संचालन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहां की पीएच0 डी 0 उपाधि हेतु विभिन्न विश्वविद्यालयों में अलग-अलग मानदंड निर्धारित किए गए हैं ।जिससे शोध में एकरूपता स्पष्ट रूप से परिलक्षित नहीं हो पाती परंतु नई शिक्षा नीति के अंतर्गत शोध आधारित विश्वविद्यालय में एक समान दिशा निर्देशों के अनुपालन पर शोध कार्य संचालित होंगे जिससे शोध की गुणवत्ता एवं एकरूपता बरकरार रह सकेगी। प्रोफेसर परसाई ने शोध के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शोधार्थी को शोध कार्य के प्रारंभ से अपने विषय वस्तु को स्पष्टता से परिभाषित कर उस विषय वस्तु पर आधारित शोध प्रश्नों के हल हेतु वैज्ञानिक प्रविधि अपनानी होगी। स्पष्ट है की शोध को तर्क की कसौटी पर कसा जाए वही शोध समाज के लीये कारगर सिद्ध हो सकेगा।

कार्यक्रम में प्रबंध अध्ययन संकाय वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर के संकाय अध्यक्ष प्रोफेसर अविनाश डी पाथर्डीकर ने कहा कि हमारा शोध विषय विदेशी मॉडल पर आधारित न होकर अपने देश के दर्शन पर आधारित होना चाहिए क्योंकि प्रत्येक राष्ट्र का अपना एक विशेष सांस्कृतिक चरित्र होता है और उसी के अनुसार सिद्धांत प्रतिपादित किए जाते हैं ।हम यदि अपने समाज के विश्लेषण में पश्चिमी समाज के मॉडल का उपयोग करेंगे तो उसके परिणाम बहुत अधिक कारगर नहीं कहलाएंगे इसलिए हमें अपने अपने मूल्यों पर आधारित शोध को प्रोत्साहित करना चाहिए।

कार्यक्रम का संचालन प्रबंध शास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर एचसी पुरोहित ने किया ।प्रोफेसर पुरोहित ने कहा की विद्यार्थियों को गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्राप्त हो इस दिशा में प्रबंध शास्त्र विभाग अनवरत प्रयत्नशील है और यह कार्यशाला इसी कड़ी में उठाया गया एक कदम है । धन्यवाद ज्ञापन कार्यशाला के संयोजक डॉ सुधांशु जोशी ने किया।

इस अवसर पर स्वामी राम विश्वविद्यालय जौलीग्रांट देहरादून के सलाहकार प्रोफेसर आलोक सकलानी, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के प्रोफेसर यशवंत गुप्ता, चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय जींद के प्रोफेसर एसके सिन्हा, डॉक्टर गजेंद्र सिंह, डॉ रीना सिंह, डॉ स्मिता त्रिपाठी, डॉक्टर वैशाली, मनोज पवार, पारस ब्मपाल सहित विभिन्न प्रांतों के एवं विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थि उपस्थित थे।

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