पशुओं को लम्पी स्किन डिजीज से बचाने हेतु सर्वाेत्तम उपाय स्वस्थ पशुओं को संक्रमण की चपेट में आने से बचाना है:आशुतोष जोशी

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टिहरी।गाय भैंसो में लम्पी स्किन डिजीज को लेकर पशु चिकित्सा अधिकारी टिहरी गढ़वाल आशुतोष जोशी ने बताया कि लम्पी स्किन डिजीज (गांठदार त्वचा रोग) गौवंशीय एवं भैंसवंशीय पशुओं का एक संक्रामक रोग है जो केप्रीपॉक्स विषाणु के कारण होता है। इस रोग में पशुओं में ज्वर के साथ त्वचा पर मोटी-मोटी गांठें बन जाती है तथा दुग्ध उत्पादन कम हो जाता है। उन्होंने कहा कि रोगी पशु से अन्य स्वस्थ पशुओं में रक्त चूसने वाले अथवा काटने वाले कीटों, जैसे मच्छर काटने वाली मक्खी, जूं, चीचड़े एवं मक्खियों आदि से यह रोग होता है। यह रोग, रोगी पशु के सम्पर्क से लार गाठों में मवाद जख्म से संक्रमित चारे पानी से भी स्वस्थ पशु में फैल सकता है। रोगी पशुओं तथा इनके संपर्क में आने वाले व्यक्तियों के आवागमन से भी रोग के फैलने की संभावना होती है। यह रोग पशुओं से इंसानों में नहीं होता है।

उन्होंने पशुपालकों को सलाह दी कि गौवंशीय एवं भैंसवंशीय पशुओं को इस रोग से बचाने हेतु सर्वाेत्तम उपाय स्वस्थ पशुओं को संक्रमण की चपेट में आने से बचाना है। पशुओं के बाह्यय परजीवियों से रोकथाम हेतु पशुचिकित्सक की सलाह पर परजीवी नाशक दवाओं का उपयोग करें। पशु आवास एवं उसके आस-पास साफ-सफाई एवं स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें। पशु आवास के नजदीक पानी मल मूत्र एवं गंदगी एकत्र न होने दें। पशुबाड़े में अनावश्यक व्यक्तियों, वाहनों आदि का आवागमन न होने दें। किसी भी पशु में रोग के आरंभिक लक्षण दिखाई देते ही उसे अन्य स्वस्थ पशुओं से तुरंत अलग कर दें। पशुओं को यथासंभव घर पर ही बांध कर रखें तथा अनावश्यक रूप से उसे बाहर नहीं छोड़े। स्वस्थ/रोगी पशुओं को चराई के लिये चारागाह या बाहर ना छोड़े। रोग ग्रस्त होने पर पशु को घर से पृथक स्थान पर रखें। किसी भी स्थिति में खुला ना छोड़े। यह रोग के फेलाव का बड़ा कारण हो सकता है। रोगग्रस्त क्षेत्रों में पशुओं का आवागमन नहीं करें। पशु उपचार हेतु नजदीकी राजकीय पशु चिकित्सक की सलाह से ही उपचार करायें। रोगी पशु को संतुलित आहार हरा चारा दलिया गुड़ बांटा आदि खिलायें।
रोगग्रस्त क्षेत्र के 01 से 05 कि.मी. परिधि में 04 माह से अधिक आयुवर्ग वाले पशुओं का गोटपॉक्स रिंग वैक्सीनेशन करायें। गोटॉक्स वैक्सीनेशन के बाद पशु को रोगी पशुओं के सम्पर्क में आने से बचाए क्योंकि वैक्सीनेशन के लगभग 20 दिनों बाद ही रोग प्रतिरोधकता उत्पन्न हो पाती है। रोगी पशुओं अथवा रोग संक्रमण आंशकाग्रस्त पशुओं का गेटपॉक्स टीकाकरण न करायें।

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