देहरादून।देवभूमि खबर। लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजने के बाद भी कांग्रेस खुद में उलझी हुई है। सूबे की पांच लोकसभा सीटों में कांग्रेस को आज भी जिताऊ उम्मीदवार की तलाश है। कई नेताओं के भाजपा में चले जाने के बाद कांग्रेस में नेताओं की कमी खल रही है। ऊपर से गुटबाजी के चलते कांग्रेस में जिताऊ उम्मीदवार ढुंढना कांग्रेस के लिए चुनौती बना हुआ है।
पिछले विधानसभा चुनाव में कई नेताओं के टूटकर भाजपा में चले जाने के बाद भी कांग्रेस आज तक एक जुट नहीं हो पायी है। हरीश रावत व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह के गुट आमने सामने है। पिछले विधानसभा चुनाव में करारी हार का ठीकरा सिर्फ हरीश रावत पर फोड़ा जा रहा है। कई कांग्रेस के दिग्गजों के भाजपा में चले जाने का दाग भी हरीश रावत के दामन पर कांग्रेस का दुसरा गुट लगा रहा है। ऐसे मेें चुनाव के एन समय भी कांग्रेस एक जुट नजर नहीं आ रहा है।
बताया जा रहा है कि उत्तराखण्ड की पांच सीटों पर कांग्रेस को जिताऊ उम्मीवार की तलाश है। पर दाव किस पर दांव खेला जाए, यह भी स्थिति साफ नहीं है। इन स्थितियों के बीच जो स्थिति उभर रही है। उसमें पार्टी कुछ सीटों पर हैवीवेट तो कुछ सीटों पर सेकेंड लाइन के नेताओं को मौका देने का सैद्धांतिक निर्णय ले चुकी है। पार्टी इस कोशिश में भी है कि उम्मीदवारों के ऐलान में देरी न हो। हालांकि उत्तराखंड में कांग्रेस से जुड़ा चुनावी इतिहास बताता है कि पार्टी के उम्मीदवारों के चेहरे नामांकन प्रक्रिया शुरु होने के बाद ही साफ हो पाते हैं। माना ये भी जा रहा है कि राहुल गांधी की 16 मार्च को प्रस्तावित चुनावी रैली के बाद ही उम्मीदवारों को लेकर अंतिम निर्णय होगा। हाईकमान राहुल की रैली के जरिये भी उम्मीदवारों की ताकत को परखने की कोशिश करेगा। कांग्रेस ने उम्मीदवार चयन के लिए निचले स्तर का पूरा काम निबटा लिया है। गेंद अब केंद्रीय नेतृत्व के पाले में हैं। सेंट्रल स्क्रीनिंग कमेटी और पार्लियामेंट्री बोर्ड से उम्मीदवारों के नाम पर मुहर लगनी है। वैसे, सूत्रों के अनुसार पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने उम्मीदवारों को लेकर हाईकमान से पूरी बात कर ली है। पांचों सीट पर उम्मीदवारों की मिलीजुली तस्वीर सामने आएगी। यानी पार्टी के लोकसभा चुनाव के लिहाज से स्थापित चेहरे भी मैदान में दिखेंगे। सेकेंड लाइन के उन नेताओं को भी बडे चुनाव में उतरने का मौका दिया जाएगा, जो अभी तक क्षेत्र विशेष तक सिमटे रहे हैं।