नई दिल्ली।एजेंसी।सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बांड के मुद्दे पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग की राय जुदा हो गई है। सरकार ने चुनावी बांड लागू करने के निर्णय को जायज बताते हुए इससे कालेधन पर अंकुश लगने और चुनावी चंदे की पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा का दावा किया है। इसके उलट आयोग ने पिछले दिनों शीर्ष अदालत से कहा था कि चुनावी बांड से पारदर्शिता पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। सरकार ने यह जवाब कई एनजीओ और माकपा की तरफ से दायर याचिकाओं पर दिया है।
केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा कि वर्ष 2012 के मुकाबले 2018 में भारत की स्थिति में सुधार आया है। वित्त विधेयक में संशोधन कर यह नियम बनाया गया है कि किसी राजनीतिक दल को 2000 रुपये से अधिक की राशि का चंदा चेक, डिमांड ड्राफ्ट या चुनावी बांड के जरिए ही देना होगा।
केंद्र सरकार ने कहा कि राजनीतिक दलों को भी इस चंदे का रिकॉर्ड तैयार करना होता है। राजनीतिक दलों को 20 हजार रुपये से अधिक का चंदा स्वीकार करते समय दानकर्ता का नाम, पता और पैनकार्ड दर्ज करना पड़ता है। चुनावी बांड से यह भी सुनिश्चित किया गया कि कोई भी फर्जी दल राजनीतिक चंदे के नाम पर उगाही नहीं कर सके। साथ ही यह व्यवस्था भी की गई है कि राजनीतिक दल खुद को मिलने वाले चंदे और चुनावी बांड की राशि को सार्वजनिक करें।