महाबीर सिंह
ऋषिकेश ।देवभूमि खबर । प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल ऋषिकेश के बीरभद्र में इस मंदिर के निकट खेतों में छोटे छोटे मंदिर और सैकड़ों विशाल शिवलिंग इस बात का संकेत देते हैं कि कभी यह क्षेत्र मंदिरों का नगर रहा होगा. हजारों साल पुराने इस अवशेष के पास ही नया वीरभद्र मंदिर स्थित है, जहां भक्त आज पूजा अर्चना करते हैं. रंम्भा नदी किनारे स्थित वीरभद्र मंदिर का प्रचार और प्रसार ज्यादा न होने के कारण उत्तराखण्ड में आने वाले तीर्थयात्रीयों को इसके बारे में ज्यादा मालूम नहीं है, लेकिन अधिकतर कांवड़िए जरूर इस मंदिर में पहुचते है. पुरास्थल का उत्खनन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा सन् 1973-75 के मध्य श्री एन0सी0 घोष द्वारा कराया गया। उत्खनन में तीन सांस्कृतिक अनुक्रम प्रकाश में आये जो निम्नलिखित हैं-
प्रारंभिक चरण – पहली शताब्दी ई0 से तृतीय शताब्दी ई0 के इस अनुक्रम में कच्ची ईंटों से निर्मित दीवार प्रकाश में आई।
मध्य चरण- चैथी शताब्दी ई0 से पांचवी शताब्दी ई0 जिसमें एक शिव मन्दिर के अवशेष तथा ईंटों के टुकड़ों से निर्मित फर्श प्रकाश में आया।
परवर्ती चरण- सातवीं शताब्दी ई0 से आठवीं शताब्दी ई0 जिसमें पकी ईटों से निर्मित है। जिसको पुरातत्व विभाग द्वारा सरंक्षित किया गया है।और पुरातत्व विभाग द्वारा जगह जगह बोर्ड लगाये गए है कि इसकी परिधि के 100 मीटर के दायरे में किसी प्रकार का निर्माण कार्य नही किया जा सकता लेकिन इसकी सीमा से लगे नाले में निर्माण कार्य किया जा रहा है जिससे मन्दिर के अस्तित्त्व को खतरा हो सकता है जिसके पुरात्तव विभाग द्वारा चेतावनी बोर्ड लगाये गए है लेकिन बोर्ड के पास ही जेसीबी मशीन से खुदाई कार्य किया जा रहा है जिससे ऐतिहासिक पुराणिक धरोहर को खतरा भी हो सकता है