स्वस्थ भारत के निर्माण में मनोवैज्ञानिक समस्याओं पर खुलकर बात करना आवश्यक: प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल

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देहरादून। दून विश्वविद्यालय में विश्व मानसिक दिवस के उपलक्ष में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. इस क्रम में विश्वविद्यालय में मानसिक स्वास्थ्य के ऊपर स्लोगन और चित्रकला की प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। विद्यार्थियों ने मानसिक समस्याओं और बेहतर मानसिक स्वास्थ्य को लेकर आकर्षक चित्र और स्लोगन लिखकर अपनी अभिव्यक्ति की।

दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल ने कहा कि आज के भागदौड़ भरे युग में मानसिक स्वास्थ्य सर्वोपरि है, इसीलिए मानसिक समस्याओं को लेकर जो भ्रांतियां हैं उन्हें दूर करने के लिए युद्ध स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। 10 से 16 अक्टूबर तक दून विश्वविद्यालय में मानसिक स्वास्थ्य सप्ताह मनाया जाएगा। इसके अंतर्गत मनोविज्ञान विभाग के द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा ताकि विद्यार्थियों के साथ साथ जनमानस के मध्य मानसिक स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाया जा सके।बहुत से मानसिक रोगों का समय पर पता चलने पर काउंसलिंग के द्वारा एवं साइकोटिक मेडिकेशंस के द्वारा उनका प्रबंधन करना आसान हो जाता है। आधुनिक डिजिटल युग में परिवार और मित्रों के बीच में परस्पर संवाद में कमी आई है, जिसके कारण हम अपने इमोशंस और मानसिक समस्याओं को शेयर नहीं कर पा रहे हैं जिसका परिणाम हमें मानसिक रोगों के तौर पर देखने को मिलता है। दून विश्वविद्यालय ने अपने विद्यार्थियों के लिए मनोविज्ञान विभाग में मनोवैज्ञानिक सहायता के लिए परामर्श सेवा केंद्र की स्थापना की हुई है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर आज हम इस बात का प्रण ले कि हम मनोवैज्ञानिक समस्याओं के बारे में खुलकर बात करेंगे और स्वस्थ भारत के निर्माण में अपना योगदान दें।

मनोविज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ राजेश भट्ट ने कहा कि विगत कुछ वर्षों से मानसिक समस्याएं पिछले दशकों की तुलना में बढ़ी है। भारत को विश्व की सुसाइड राजधानी कहा जाने लगा है क्योंकि प्रतिवर्ष भारत में सुसाइड करने वाले लोगों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ रही है। जिस हिसाब से दिन प्रतिदिन मनोरोगियों की संख्या बढ़ रही है उस अनुपात में मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित स्वास्थ्य व्यवस्थाएं सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र में उपलब्ध कराना आज भी एक चुनौती है। जनमानस के मध्य आज भी मानसिक समस्याओं को कलंक के तौर पर देखा जाता है। जिसका परिणाम यह होता है कि मानसिक समस्या होने पर लोग काउंसलर के पास जाने पर हिचकते हैं।

इस कार्यक्रम में डॉ स्वाति सिंह, यशवी, दीपक कुमार, आयुषी पंडवाल, विज्ञानी और निशिता आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई एवं अनेक अन्य विद्यार्थियों ने प्रतिभाग किया।

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