उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के मूल निवासियों को जनजाति क्षेत्र घोषित करने की मांग

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अल्मोड़ा।उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के मूल निवासियों को जनजाति क्षेत्र घोषित करने की मांग जोर पकड़ रही है। सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों का कहना है कि उत्तराखंड की पर्वतीय संस्कृति, रीति-रिवाज और जीवन शैली जनजाति समुदाय के समान है, इसलिए इन क्षेत्रों को जनजाति क्षेत्र घोषित किया जाना चाहिए।

प्राचीन काल से उत्तराखंड के खस लोगों को इस भूमि का मूल निवासी माना जाता है। उनकी संस्कृति, पूजा-पद्धति, और रीति-रिवाज पूरी तरह से जनजातीय समुदायों की तरह हैं। इस क्षेत्र के लोग देवी-देवताओं की पूजा, विशेषकर नवरात्रि के दौरान बलि पूजा, प्राचीन समय से करते आ रहे हैं, जो यहां की परंपराओं का एक अभिन्न हिस्सा है। उत्तराखंड को “देवभूमि” कहे जाने का यही प्रमुख कारण है। यहां हर देवी-देवता के नाम पर अलग-अलग कहावतें और कहानियां प्रचलित हैं, जो इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाती हैं।

जैसे झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, और बंगाल के निवासियों को जनजातीय दर्जा प्राप्त है, उसी प्रकार से उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों को भी जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग उठाई जा रही है। इन राज्यों में जनजातीय समुदायों की पहचान उनकी परंपराओं, संस्कृति, और जीवन शैली से होती है, और इसी आधार पर उत्तराखंड के लोग भी खुद को जनजाति मानते हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता प्रताप सिंह नेगी ने बताया कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के मूल निवासियों का रहन-सहन, खान-पान, और संस्कृति पूरी तरह से उन राज्यों की जनजातियों से मेल खाती है जिन्हें पहले से ही जनजाति का दर्जा मिला हुआ है। उन्होंने उदाहरण दिया कि जैसे जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी पंडित, लद्दाख के लोग, और छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, और मध्य प्रदेश के लोग जनजाति का दर्जा रखते हैं, वैसे ही उत्तराखंड के निवासियों को भी यह अधिकार मिलना चाहिए।

नेगी का कहना है कि अगर उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों को जनजातीय दर्जा मिलता है, तो इससे यहां की नई पीढ़ी के लिए उज्जवल भविष्य के अवसर खुलेंगे। उन्हें शिक्षा, रोजगार, और अन्य सरकारी योजनाओं में विशेष आरक्षण और सुविधाएं मिलेंगी, जिससे पहाड़ी क्षेत्रों का समग्र विकास संभव हो सकेगा। उन्होंने यह भी कहा कि जनजातीय दर्जा मिलने से उत्तराखंड के निवासियों की सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी, जो धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैं।

जनजाति दर्जा मिलने से पहाड़ी क्षेत्रों में आर्थिक और सामाजिक सुधार आएगा, और वहां के लोगों का जीवन स्तर ऊंचा उठेगा।

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