देवस्थानम एक्ट लागू करने से तीर्थ पुरोहितों के हक-हकूकों पर किसी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा : शिव प्रसाद ममगाईं

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देहरादून।देवभूमि खबर। उत्तराखंड चारधाम विकास परिषद के उपाध्यक्ष आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं ने कहा कि देवस्थानम एक्ट लागू करने से तीर्थ पुरोहितों के हक-हकूकों पर किसी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस एक्ट को लाने का मुख्य उद्देश्य चार धामों और अन्य पौराणिक मंदिरों को विकसित करना और तीर्थयात्रियों को बेहतर सुविधाएं देना है। उन्होंने कहा कि तीर्थ पुरोहित विरोध प्रदर्शन का रास्ता छोड़कर संवाद के लिए आगे आयें।
देहरादून में अपने कार्यालय में पत्रकारों से वार्ता करते हुए श्री ममगाईं ने कहा कि राज्य में चारों धामों और पौराणिक मंदिरों के संरक्षण व विकास के लिए देवस्थानम एक्ट तैयार किया गया है। मुख्यमंत्री जी द्वारा स्पष्ट किया गया है कि इस एक्ट के प्रभावी होने से चारों धामों और मंदिरों के पुरोहितों व सेवादारों के हक- हकूकों पर किसी भी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि मेरे द्वारा श्राइन बोर्ड गठन किए जाने के विरोध में चार धाम विकास परिषद के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा मुख्यमंत्री को सौंपा गया था। मुख्यमंत्री द्वारा इस आश्वासन के साथ मेरा इस्तीफा नामंजूर किया गया कि चारों धामों तथा राज्य के अन्य पौराणिक मंदिरों के हक-हकूकधारियों के हक पूर्ववत सुरक्षित रखे जाएंगे। मैंने पुनः उपाध्यक्ष चार धाम विकास परिषद का पद संभाला है। मैं राज्य सरकार तथा चारों धामों व मंदिरों के पुरोहितों व पुजारियों के मध्य सामंजस्य बनाए रखने को सेतु के रूप में कार्य करूंगा। उन्होंने कहा कि मैं यह स्पष्ट रूप से बताना चाहूंगा कि राज्य सरकार और मुख्य रूप से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा सभी तीर्थ पुरोहितों एवं हक-हकूकधारियों का आह्वान किया गया है कि वे विरोध प्रदर्शन का रास्ता छोड़कर संवाद के लिए आगे आयें। संवाद का रास्ता हमेशा खुला है। चार धाम विकास परिषद का उपाध्यक्ष के रूप में मुझे जिम्मेदारी दी गई है कि मैं सभी तीर्थ पुरोहितों से विचार-विमर्श कर शासन व सरकार को आपके विचारों से अवगत कराऊं। मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ अपनी सक्रिय भूमिका निभाऊंगा। मैं स्वयं ही धर्म से जुड़ा हुआ और धर्म रक्षा के लिए निरंतर प्रयासरत हूं, राजनीतिक नहीं बल्कि धर्म की बात करूंगा। हमारा प्रयास होगा कि चारों धामों में पूजा पद्धति तथा प्रबंधन हेतु आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा और उससे भी पूर्व स्थानीय पंडा, पुरोहितों द्वारा स्थापित व्यवस्थाओं और परंपराओं को अक्षुण्ण रखा जाए। वर्तमान में सरकार द्वारा तैयार किया गया एक्ट मंदिरों के विकास को दृष्टिगत रखते हुए तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य किसी भी प्रकार से हमारी पूजा पद्धति अथवा परंपराओं से छेड़छाड़ करना एवं किसी के हक हकूक छीनना नहीं है। यदि हम और आप आगे बढ़ कर आपस में संवाद करें तथा सरकार व शासन द्वारा तैयार किए जा रहे देवस्थानम मसौदा को पढ़ें और समझें एवं इसे तैयार करने में अपनी भूमिका निभाएं तो यह कारगर पहल होगी। दूरी बढ़ाकर और आंदोलन व विरोध प्रदर्शन करके समस्या का समाधान संभव नहीं है। संवाद के लिए सदैव चार धाम विकास परिषद के द्वार खुले हैं और सकारात्मक संवाद के लिए तीर्थ पुरोहितों, पुजारियों, हक-हकूकधारियों का आह्वान करता हूं।

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