उत्तराखंड

पर्वतीय राज्य में ग्लोबल वार्मिंग हो रही है इसे सुधारा जाए: धन सिंह रावत

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नैनीताल।देवभूमि खबर। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तत्वावधान में यहां कुमाऊं विश्वविद्यालय हरमिटेज भवन सभागार में दो दिवसीय सेमिनार शुरू होने पर 21 वीं सदी के भारत में पर्यावरण व स्थाई विकास विषय पर आयोजित इस सेमिनार का उद्घाटन प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डा. धन सिंह रावत ने दीप प्रज्जवलित कर किया। इस अवसर पर रावत ने विभिन्न प्रदेशों से आये कुमाऊँ विश्व के साथ अन्य विश्व विद्यालयों के कुलपतियों व प्रोफेसर, शोधकर्त्ताओं को सम्बोधित करते हुए कहा हि पर्वतीय राज्य में ग्लोबल वार्मिंग हो रही है इसे सुधारा जाए। हमारे मुख्यमंत्री के नेतृत्व में पहला उत्तराखण्ड राज्य ऐसा हैं जहॉ कि हमने 100 प्रतिशत प्राचार्यों को कल भेज दिये है और 877 असिस्टेंट प्रोफेसर प्रदेश में कमी है उनका भी रिर्टन टेस्ट होना है। इस साल के अन्त तक हम बहुत बड़ी चुनौति के रूप में असिस्टेंट प्रोफेसर भेज देंगे। जहॉ भी कॉलेजों में कैम्पस में असिस्टेंट प्रोफेसर की कमी है उनके पद भी भर दिये जायेगें। हमने उच्च शिक्षा में अधिकतम आयु व बी प्लस खत्म कर दिया है जिससे कई छात्र-छात्राओं को बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। हमारा लक्ष्य है कि हमारा प्रदेश शिक्षा के क्षेत्र में केरल से भी आगे निकले 2019 तक प्रदेश को पूर्ण रूप से साक्षर बनाया जाना है वर्तमान में 88 प्रतिशत लोंग साक्षर है इस 88 प्रतिशत को 100 प्रतिशत करने का प्रयास किया जाना है। उन्होंने कहा कि हमारा पहला बड़ा निर्णय यह है कि शैक्षिक कलेन्डर बनाया जा रहा है जिसमें 180 दिन पढ़ाई, 40 दिन परीक्षाऐं व 30 दिनों में परीक्षा परिणाम के साथ 07 दिनों में छात्र संघ चुनाव कराने का निर्णय लिया गया है। डॉ धन सिंह रावत व विभिन्न विश्व विद्यालय के कुलपति द्वारा ने इस सेमिनार में दो पुस्तक उत्तराखण्ड में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता व पर्यावरण अज्ञानता विनाशक संभावनाओं की नामक पुस्तक का विमोचन किया। इस सेमिनार के मुख्य वक्ता यूकोस्ट के महानिदेशक डा. राजेन्द्र डोभाल ने हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरण परिवर्तन पर चिन्ता प्रकट करते हुए कहा कि यह हिमालयी क्षेत्र के लिए खतरनाक संकेत है। आज हिमालयी क्षेत्र में वन्य जीवों के साथ ही वनस्पतियां भी लुप्त हो रही है। इनके संरक्षण के लिए हम सभी को गंभीर होना होगा। उन्होंने कहा कि हिमालय क्षेत्र के एक हजार मीटर की ऊंचाई से जैव विविधता का संरक्षण किया जाना आज आवश्यक है। उन्होंने चीड़ के जंगलों का उच्च हिमालयी क्षेत्र के हरित जंगलों में अतिक्रमण पर अत्यधिक चिन्ता जाहिर करते हुए कहा कि यह जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है। इस पर अब गंभीरता से कार्य करने की जरूरत है। उन्होंने हिमालयी क्षेत्रों में प्लास्टिक के बढ़ते प्रचलन पर भी चिन्ता व्यक्त की। सेमिनार में प्रो. जीएल साह, प्रो. उपाध्याय, प्रो. एमएम सेमवसल, प्रो. आरएस भाकुनी, प्रो. मनोज दीक्षित, डा. रितेश साह सहित देश के विभिन्न हिस्सों से आये विशेषज्ञ भाग ले रहे है।

 

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