चुनावी जुमले नहीं, आशाओं को उनका हक़ और अधिकार दो!

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चुनाव में अपने शोषण का बदला लो – सरकार को बदल डालो!

उत्तराखण्ड की आशा वर्कर्स से अपील

प्रिय बहनों, साथियों, उत्तराखण्ड में आगामी 19 अप्रैल को लोकसभा चुनाव में वोटिंग होनी है। यह मौका है सरकार के पिछले कार्यकाल पर नजर डालकर देखने का कि आशाओं को क्या हासिल हुआ और फिर सोच समझ कर वोट देने का।

आशा साथियों, यदि हम पिछले बीते दस सालों पर एक नजर डालें तो ये साफ़ नजर आता है कि आशाओं और अन्य स्कीम वर्कर्स ने जी जान लगाकर आम जनता की सेवा की है। जच्चा और बच्चा के स्वास्थ्य की बेहतरी के साथ-साथ कोरोना महामारी के दौर में आशाओं ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर आम जनता की सेवा की। इस दौरान कई आशाओं ने अपनी जान भी गंवाई। आशाओं ने देश के दूरदराज गाँवों में सरकार का हर अभियान और स्कीम बच्चों और महिलाओं तक पहुँचाया है। जबकि आशाओं को इस कार्य के दौरान ढ़ेरों दुर्घटनाओं का सामना विगत वर्षों में करना पड़ा है, पर कोई मुआवजे का प्रावधान सरकार की ओर से नहीं है। उत्तराखंड के साथ साथ बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, प. बंगाल, तेलंगाना समेत देश के अगल-अलग हिस्सों में सम्मान, उचित वेतनमान, पेंशन और सेवा नियमितीकरण की मांगों को लेकर आशाओं ने शानदार आन्दोलन चलाए हैं। अधिकतर राज्यों में आशा वर्कर्स ने बड़ी-बड़ी हड़तालों को संगठित करने समेत सड़कों पर आन्दोलन कर अपनी कुछ मांगों के सामने सरकारों को झुकाया भी हैं। लेकिन देशव्यापी आंदोलन के बाद भी मोदी सरकार आशाओं की मांगों पर लगातार दस साल से चुप्पी साधे हुए है। पिछले वर्षों में आशाओं को वेतन देना तो दूर मानदेय तक केंद्र सरकार ने घोषित नहीं किया है और जो प्रोत्साहन राशि मिल भी रही है उसमें भी कोई इजाफा केंद्र सरकार की ओर से नहीं किया गया है। बल्कि दशकों से चल रही एन एच एम की बुनियादी सरकारी योजना को मोदी सरकार कमजोर करने में लगी हुई है। जब से यह सरकार आई है एन एच एम जैसी योजनाओं के लिये बजट का आवंटन साल-दर-साल घट रहा है। दूसरी ओर, इस योजना को निजी कंपनियों या एनजीओ को सौंपा जा रहा है। असल में, मोदी सरकार इस योजना से पीछा छुड़ाने की फिराक में है। मतलब साफ है कि इस स्कीम और आशा कर्मियों का अस्तित्व खतरे में डाला जा रहा है। और हमारे हाथ में संघर्ष के हथियार के रूप में मौजूद श्रम कानूनों को बदलकर गुलामी के प्रतीक श्रम कोड में बदला जा रहा है।

उत्तराखंड में भी बीजेपी की धामी सरकार ने आंदोलन के समय खटीमा में आशाओं के साथ किए गए वायदे को नहीं निभाया, डी जी हेल्थ द्वारा आशाओं के मानदेय के प्रस्ताव को वादा करके भी नहीं निभाया।

यह सब देखते हुए और साथ ही आज पूरे देश में भाजपा-मोदी सरकार द्वारा जिस तरह से आम जनता के मुद्दों को दरकिनार करते हुए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण चलाया जा रहा है, और मेहनतकशों व मजदूरों को बांटा जा रहा है। इस लोकसभा चुनाव के दौरान भी मोदी सरकार और उसकी गोदी मिडिया द्वारा ‘विकसित भारत’, ‘मोदी की गारंटी’ , ‘अमृत काल’ जैसे लगातार झूठे प्रचार को चलाकर वोट बटोरने की कोशिश जारी है। साथ ही साथ यह भी याद रखना आवश्यक है कि रसोई गैस, खाने के तेल, दालों, आटा, चावल, मसालों, पेट्रोल, डीजल समेत तमाम उपभोक्ता सामग्री में जिस तरह से लगातार इस सरकार के राज में वृद्धि हुई उसने आम जनता की कमर तोड़ कर रख दी है, आशाओं को तो जो पैसे मिलते हैं उससे इस बढ़ती महंगाई में गुजारा चलाना संभव ही नहीं है।

ऐसे समय में ये आवश्यक है कि हम अपने हर दिन के संघर्ष और आन्दोलन को न भूलें, वेतन , कर्मचारी का दर्जा, पेंशन देने में सरकार के इंकार को न भूलें, आशाओं को मिले अपमान और गुलामी को न भूलें, कोरोना काल में मोदी सरकार की चरम संवेदनहीनता और वादाखिलाफी को न भूलें, भाजपा राज्य सरकार की वादाखिलाफी को न भूलें और एकजुट होकर आशा वर्कर्स के अधिकारों पर लगातार हमला करने वाली मोदी सरकार को चुनाव में हराने के लिए वोट दें। इस सरकार को आशाओं की वोट ताकत का अहसास कराना जरूरी है जिससे आने वाली सरकार आशाओं की मांगों को हल करने के लिए आगे बढ़े। मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ देश में विपक्षी पार्टियों का ‘इंडिया गठबंधन’ बना है भाजपा के खिलाफ इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों को जिताएं। उत्तराखंड राज्य में इंडिया गठबंधन के तौर पर लोकसभा की पांचों सीटें कांग्रेस पार्टी के हिस्से में आई हैं इसलिए आगामी 19 अप्रैल को आशाओं को धोखा देने वाली भाजपा की केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ एकजुट होकर मतदान करें और कांग्रेस प्रत्याशियों को चुनाव निशान हाथ के सामने का बटन दबाकर अपनी अपनी लोकसभा सीटों से चुनकर संसद में भेजें।

2024 के लोकसभा चुनाव में आशाओं के अधिकारों पर लगातार हमले करने वाली मोदी सरकार को शिकस्त दें!

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