भौतिक सुखों की अतृप्त लालसा मनुष्य के लिए मृग तृष्णा के समान होती हैं:शिव प्रसाद मंमगाई

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देहरादून । सरस्वती विहार विकास समिति अजबपुर खुर्द देहरादून द्वारा आयोजित शिव महापुराण के तृतीय दिवस पर कथा व्यास आचार्य शिव प्रसाद मंमगाई ने कहा कि-वस्तुतः ‘मन का सुख’ ही मनुष्य के लिए “सम्पूर्ण ठहराव.प्रगतिशील उन्हें कहा जाता है जो परिवर्तन की प्रक्रिया से भयभीत नहीं होते। स्थिरता ही जड़ता है, नीरसता है, निष्क्रियता है ।परिवर्तन प्रगति की पहली सीढ़ी है, आत्मविश्वास से अग्रसर हों”संघर्ष करते रहोआगे बढ़ते: रहो ।

ज्योतिष्पीठ व्यास आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं ने पार्थिव लिए कई चर्चा करते हुए कहा कि सतयुग में रत्न लिंग त्रेता में सुवर्ण द्वापर में रजत कलयुग में पार्थिवेश्वर पूजन से शीघ्र सिद्धि व सफलता मिलती है पार्थिवेश्वर पूजन नदी किनारे अपने घर पर वन में करने की विधि बताई पार्थिव लिंग का प्रमाण 4 अंगुल का उत्तम इससे ऊपर मध्यम इससे नीचे अधम परर्थिव लिंग की पूजा कामना के अनुसार विद्यार्थी को 1000 लिंग धन की इच्छा वाले को 500 पुत्रार्थी को 1500 वस्त्र चाहने वाले को 500 मोक्ष चाहने वाले को 1 करोड़ नित्य एक लिंग सिद्धिहारी 3 लिंग बहु रूप में पूजा करने पर सब कामना पूर्ण करने वाले होते हैं ।जहाँ जन्म है वहीं मनुष्य का क्रम भी है ।जीवन कर्म का पर्याय है इसलिए जीवन ही कर्म है मृत्यु कर्म का आभाव है ।म्रत्यु के बाद चित पर उनकी स्मृतिय शेष रहती है, जो बुराई को जन्म देती है ।संसार की गति अविरल वृताकार है इसका न कही आदि है न अंत ।सृष्टि निर्माण एबम विध्वंस का कार्य सतत रूप से चलरहा है ।जहाँ यह व्रत पूरा होगा तथा नई सृष्टि के लिए अवसर उपस्थित होगा ।इसी प्रकार कर्म व वासनाओ की गति भी वृत्ताकार है कर्म से स्मृति व संस्कार बनते हैं तथा इन संस्कारों के कारण विषय वासना दुर्भावना जागृत होती है वासना आसक्ति से जन्म मृत्यु पुनर्जन्म का चक्र आरम्भ होता है। भोग प्रारबधिन है व भगवान ने मनुष्य को क्रिया शक्ति दी है। क्रिया को व्यर्थ गवाने पर पाप व अर्जित करने पर सुखा नुभूति होती है। अहिंसा के सिद्धांत जिस तत्व में मानने की व्यवस्था है वही सनातन धर्म है हमारा चित संसार व आत्मा के बीच का सेतु है जो विषय वासना की पूर्ति के साधन है। दूसरी ओर चित जड़ है ।यह आत्मा के प्रकाश से प्रकाशित होता है यह चेतन आत्मा सूक्ष्म है ।अतः प्रवर्ति सदैव दिखती है जब योगी को समाधि अवस्था मे प्रकृति पुरुष का भेद स्प्ष्ट हो तब वह निज स्वरूप आत्मा की ओर प्रवर्त होता है ।प्रकति को अपने से सदा विदा करना ही उसकी कैवल्य अवस्था है। वह प्रकृति के दास से उसका स्वामी बन जाता है उससे वह विषयो की ओर आकर्षित होता था वह छोड़कर आत्मानंद की ओर अभिमुख होता है।

इस अवसर पर पंचम सिंह विष्ट अध्यक्ष सचिव गजेंद्र भण्डारी ,वरिष्ठ उपाध्यक्ष बी एस चौहान, उपाध्यक्ष कैलाश तिवारी, कोषाध्यक्ष विजय सिंह ,वरिष्ठ मंत्री अनूप सिंह फर्त्याल, संयोजक मूर्ति राम बिजल्वाण ,सह संयोजक दिनेश जुयाल ,प्रचार सचिव सोहन रौतेला, श्री पी एल चमोली, श्री मंगल सिंह कुट्टी, श्री बी पी शर्मा, श्री दीपक काला, श्री आशीष गुसाई, श्री नितिन मिश्रा, श्री राजेंद्र प्रसाद डिमरी, श्री योगेश प्रियंका घनशाला, श्री कैलाश रमोला, श्री विनोद पुंडीर, श्री बगवालिया सिंह रावत, आचार्य उदय प्रकाश नौटियाल ,आचार्य सुशांत जोशी आदि भक्त गण उपस्थित थे।

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