सचिवालय संघ ने सीएम से विधि का शासन  स्थापित करते हुए संयुक्त सचिव का निलम्बन समाप्त करने का किया अनुरोध

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देहरादून। उत्तराखण्ड सचिवालय संघ ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर विधि का शासन स्थापित करते हुए श्री सन्तोष बड़ोनी संयुक्त सचिव का निलम्बन तत्काल प्रभाव से समाप्त करने के सम्बन्ध में अनुरोध किया।

सीएम को प्रेषित पत्र के माध्यम से संघ ने कहा कि सचिवालय प्रशासन अधिष्ठान अनुभाग-1 के आदेश सं0-1168 दिनांक 01 सितम्बर, 2022 के द्वारा उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में सचिव के पद पर कार्यरत रहने के दौरान पदीय कर्तव्य एवं दायित्वों में बरती गयी उदासीनता एवं पदीय दायित्वों का पर्यवेक्षण उचित एवं सही प्रकार से न करने के दृष्टिगत उत्तराखण्ड राज्य कर्मचारियों की आचरण नियमावली-2002 के नियम-3 के उपनियम (1) एवं (2) तथा उत्तराखण्ड सरकारी सेवक (अनुशासन एवं अपील) संशोधन नियमावली-2010 के नियम-4 के उपनियम (1) में उल्लिखित प्राविधानो के अन्तर्गत निलम्बित किया गया है।

संघ ने कहा कि निलम्बन अवधि 01 वर्ष 3 माह से अधिक समय होने के उपरान्त भी आतिथि तक श्री बडोनी को न तो कोई आरोप पत्र निर्गत किया गया और न ही सेवा में बहाली की गयी, जो कि निलम्बन के सम्बन्ध में कार्मिक विभाग द्वारा स्थापित नियमों / शासनादेश का खुला उल्लंघन प्रतीत हो रहा है।

संघ ने कहा कि निलम्बन आदेश में कार्य के प्रति लापरवाही एवं उदासीनता के सम्बन्ध में लगाये गये आरोपों का श्री बड़ोनी के द्वारा अपना विस्तृत प्रत्यावेदन दि0 23.08.23 के द्वारा सचिवालय प्रशासन विभाग को दिया जा चुका है।

संघ ने कहा कि श्री बडोनी सचिवालय सेवा के एक ईमानदार एवं कर्तव्य निष्ठ अधिकारी है, इनकी 25 वर्षों की उत्कृष्ठ सेवाऐं विभाग में रही है। उत्तराखण्ड शासन के द्वारा पर्यटन विभाग में कार्यरत रहने के दौरान राज्य के प्रतिनिधि के रूप में इनको इजरायल भेजा गया। वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा में इनके द्वारा दिन रात बडी लग्न एवं ईमानदारी के साथ कार्य किया इनकी सेवाओं को देखते हुए तत्कालीन महामहिम श्री राज्यपाल जी एवं मा० मुख्यमंत्री जी के द्वारा इनको प्रशस्ति पत्र देक भी सम्मानित किया गया ।

उल्लेखीनय है कि कदाचित प्रदेश का यह पहला मामला है जहाँ किसी अधिकारी को उत्कृष्ट कार्य के बावजूद निलम्बन किया गया एवं निलम्बन के उपरान्त आतिथि तक कोई आरोप पत्र निर्गत नहीं किया। सचिव अधीनस्थ चयन आयोग के पदीय कर्तव्यों दायित्वों का निर्वह्न न

किये जाने का आरोप लगा कर निलम्बन किया गया, किन्तु परीक्षा नियंत्रक पदभार की इनकी जाँच विभिन्न स्तरों पर की गई सतकर्ता विभाग द्वारा अपनी जाँच रिपोर्ट शासन को प्रेषित कर दी गई है। उक्त के अतिरिक्त एस०टी०एफ०, बिजलेन्स, ई०डी० व सचिव समिति की जाँचे समाप्त हो जाने व श्री बडोनी के विरूद्ध कोई तथ्य न मिलने के उपरान्त भी निलम्बन समाप्त न किया जाना बहुत ही खेदजनक एवं कष्टकारी प्रतीत हो रहा है।

संघ ने कहा कि- अवगत कराना है कि किसी भी कार्मिक का निलम्बन एवं बहाली के सम्बन्ध में शासनादेशों में व्यवस्थाएं निहित है जिसमें

(1) सरकारी कर्मचारियों का निलम्बन तथा निलम्बन से सम्बन्धित मामलों का शीघ्र निस्तारण के सम्बन्ध में कार्मिक विभाग के शासनादेश संख्या-1626 दिनांक 23.01.2003 में यह प्राविधान किये गये हैं अत्यन्त गंभीर मामलों में भी अधिकतम 03 माह के भीतर आरोप पत्र दे दिया जाय।

(2) कार्मिक विभाग के शासनादेश संख्या-1626 दिनांक 23.01.2003 में यह प्राविधान किये गये हैं कि जिन कर्मचारियों के निलम्बन की अवधि 06 महीने की हो चुकी है और आरोप पत्र तामील नहीं किया गया है और किन्हीं अपरिहार्य कारणों से ऐसा करना सम्भव न हो, तो उन्हें तत्काल बहाल कर दिया जाय। बहाली के बाद सम्बन्धित कर्मचारी के विरूद्ध आरोपों की गम्भीरता को देखते हुए प्रासंगिक नियमावली के प्राविधानों के अनुसार कर्मचारी को पुनः निलम्बित किये जाने का औचित्य हो, तो समुचित आधार देते हुए ऐसा किया जा सकता है। किन्तु ऐसे मामलों में निलम्बन के आदेश के साथ-साथ आरोप पत्र अवश्य दिया जाय और निलम्बन आदेश जारी करने से पूर्व कार्मिक विभाग की अनुमति अवश्य प्राप्त कर ली जाय।

(3) कार्मिक अनुभाग-2 के शासनादेश संख्या-1543 दिनांक 28.12.2005 में अंकित दिशा-निर्देशों के प्रस्तर 5.4 में निहित व्यवस्थानुसार यदि निलम्बन काल की अवधि 06 माह से अधिक बीत जाय, तो प्रत्येक 06 माह में निलम्बन का पुर्ननिरीक्षण किया जाय।

उक्त शासनादेश के 5.2 में व्यवस्था है कि यदि मामला, जांच सतर्कता अधिष्ठान / अपराध अनुसंधान को सौंप दिया गया है तो विभागीय स्तर पर औपचारिक जांच नहीं की जानी चाहिये और यदि विभागीय स्तर पर जांच चल रही हो तो, रोक देनी चाहिये। अन्तिम जांच आख्या प्राप्त होने तक नियमानुसार अग्रेत्तर कार्यवाही की जानी चाहिये । (4) निलंबन के संबंध में जारी शौनादेश संख्या-1626/कार्मिक-2/ 2002 दिनांक 23.01.2003 में यह भी स्पष्ट उल्लिखित है कि:-

“किसी कर्मचारी को निलंबित किये जाने पर एक ओर उसकी आत्मसम्मान को भारी ठेस पहुंचती है और दूसरी ओर उसे इस काल में आर्थिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

(5)- श्री संतोष बडोनी, संयुक्त सचिव (निलम्बित) की निलम्बन अवधि को 06 माह पूर्ण होने के फलस्वरूप वित्तीय हस्त पुस्तिका खण्ड-2 भाग 2-4 के मूल नियम-53 एवं विभिन्न शासनादेशों में अंकित प्राविधानुसार सचिवालय प्रशासन (अधि०) अनुभाग-1 के कार्यालय आदेश संख्या-304 दिनांक 10.03.2023 द्वारा उनको अर्द्ध वेतन पर देय अवकाश वेतन की राशि के बराबर दिये जा रहे जीवन निर्वाह भत्ते को 50 प्रतिशत बढ़ाये जाने की स्वीकृति प्रदान की गयी है, तथा वर्तमान में इनको 75 प्रतिशत तक का भुगतान निलम्बन के दौरान किया जा रहा है।

श्री सन्तोष बड़ोनी, संयुक्त सचिव, उत्तराखण्ड शासन का अनैतिक रूप से किया गया निलम्बन आदेश अब यह दर्शाता है कि विभागीय अधिकारी सचिवालय सेवा के अधिकारी की छवि को धूमिल करने का प्रयास कर रहे है तथा Rule of Law के स्थान पर Rule by Law का प्रयोग इस प्रकरण पर किया जा रहा है, जो कि चिन्ता का विषय है तथा सचिवालय परिवार इस प्रकार के निर्णय से अघात है कि ऐसे साफ छवि वाले अधिकारी की समाज में जाँच होने के उपरान्त भी अभी तक निलम्बन वापस न होने के कारण अनावश्यक रूप से छवि धूमिल हो रही है।

अतः निलम्बन के सम्बन्ध में कार्मिक विभाग द्वारा निर्गत शासनादेशों के अनुसार कार्यवाही करते हुए श्री बड़ोनी की तत्काल निलम्बन आदेश निरस्त करते हुए सेवा में बहाल करने का सम्बन्धित को निर्देश जारी करने की कृपा करें।

सचिवालय संघ के प्रतिनिधि मंडल में सचिवालय संघ के अध्यक्ष श्री सुनील लाखेड़ा ,उपाध्यक्ष जीत मणी पैन्यूली, महासचिव राकेश जोशी ,संयुक्त सचिव रणजीत सिंह,जगत सिंह ,लालमणि जोशी ,रेनू भट्ट ,प्रमिला टमटा आदि उपस्थित थे।

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